Ethiopia Volcano Eruption की राख भारत पहुँची: प्रदूषण खतरे की पूरी जानकारी

0 Divya Chauhan
Ethiopian Volcano Hayli Gubbi Erupted

इथियोपिया के अफ़ार क्षेत्र में स्थित Hayli Gubbi नामक ज्वालामुखी लगभग 12,000 वर्ष शांत रहने के बाद अचानक सक्रिय हो गया। इस अप्रत्याशित विस्फोट ने विशाल मात्रा में राख, गैसें और अत्यंत सूक्ष्म कांच जैसे कण हवा में छोड़ दिए। यह राख सामान्य धूल नहीं होती, बल्कि महीन सिलिका, कांच जैसे कण और विभिन्न गैसों का मिश्रण होती है, जो वातावरण पर गहरा प्रभाव डालती है।

विस्फोट के बाद हवा की दिशा पूर्वोत्तर होने के कारण राख का घना बादल पश्चिम एशिया होते हुए भारत की दिशा में बढ़ा। उच्च वायुमंडलीय स्तर पर बनी इस राख ने गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और पंजाब के ऊपर के हिस्सों से होकर दिल्ली के ऊपर वाले ऊँचे स्तर तक पहुँचने का संकेत दिया। यह सतह के करीब नहीं है, लेकिन ऊपरी परतों तक पहुँच जाना भी वातावरण पर असर डालने के लिए पर्याप्त होता है।

ज्वालामुखीय राख भारत तक कैसे पहुँची?

ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान राख का बादल बहुत ऊँचाई तक ऊपर उठ जाता है। इस बार बनने वाला बादल लगभग 25,000 से 45,000 फीट की ऊँचाई तक पहुंचा, जो विमान उड़ान के स्तरों के निकट होता है। इस ऊँचाई पर तेज़ हवाएँ लगातार पश्चिम से पूर्व की दिशा में बहती हैं, जिन्हें वैज्ञानिक “upper air circulation” कहते हैं। इन्हीं हवाओं ने राख को इथियोपिया से भारत की ओर धकेल दिया।

जैसे ही राख का बादल अरब सागर के ऊपर पहुँचा, हवा की गति ने इसे धीरे-धीरे उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में मोड़ दिया। इससे यह बादल राजस्थान, गुजरात, पंजाब और हरियाणा के ऊपर वाले ऊपरी स्तरों तक पहुँचा और फिर दिल्ली की दिशा में आगे बढ़ा।

महत्वपूर्ण: यह राख जमीन पर नहीं बैठी, बल्कि ऊँचे वायुमंडलीय स्तर पर तैर रही है। फिर भी इसके प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

ज्वालामुखीय राख में क्या होता है?

ज्वालामुखी से निकलने वाली राख सामान्य धूल नहीं होती। यह विभिन्न खनिजों, कांच जैसे कणों और रासायनिक गैसों का मिश्रण होती है।

तत्वप्रभाव
सिलिकाफेफड़ों में जलन और खांसी
कांच जैसे कणआँखों में जलन
सल्फ़र गैसगले में खराश और साँस में परेशानी
सूक्ष्म कण (PM)वातावरण की गुणवत्ता खराब

ये कण अत्यंत महीन होते हैं और फेफड़ों की गहराई तक जा सकते हैं। हालांकि अभी यह बादल ऊँचाई पर है, लेकिन स्थिति बदल सकती है अगर हवा की दिशा नीचे की तरफ झुकती है।

दिल्ली और उत्तर भारत पर क्या असर पड़ेगा?

दिल्ली और उत्तर भारत पहले ही हवा की बेहद खराब स्थिति से जूझ रहे हैं। इस समय हवा “बहुत खराब” से “गंभीर” स्तर पर है। ऐसे में ज्वालामुखीय राख का बादल चिंता बढ़ाता है।

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय राख का बादल ऊँचाई पर है और जमीन-स्तर की AQI में बड़ा उछाल तत्काल नहीं होगा। फिर भी, यदि हवा की दिशा बदली या मौसमगत अस्थिरता हुई तो यह राख नीचे आ सकती है। इससे स्थिति और खराब हो सकती है।

मुख्य बात: फिलहाल जोखिम सीमित है, लेकिन हवा की दिशा में बदलाव स्थिति को गंभीर बना सकता है।

किन लोगों को सबसे अधिक खतरा?

ऊँचे स्तर पर मौजूद होने पर भी राख संवेदनशील लोगों के लिए जोखिम पैदा कर सकती है।

  • अस्थमा के मरीज
  • सांस संबंधी रोगों से पीड़ित लोग
  • छोटे बच्चे
  • गर्भवती महिलाएँ
  • बुजुर्ग
  • साइनस और एलर्जी वाले व्यक्ति

इन लोगों को जलन, खांसी, गले में परेशानी और सांस में कठिनाई जैसे लक्षण जल्दी महसूस हो सकते हैं।

भारत के राज्यों पर संभावित असर

राख-बादल भारत के कई राज्यों के ऊपर वाले वायुमंडलीय स्तरों से होकर गुजर रहा है। इसकी सबसे अधिक गतिविधि अरब सागर के ऊपर देखी गई, लेकिन हवा की तीव्र गति के कारण यह राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा की दिशा में आगे बढ़ा।

इन राज्यों में जमीन-स्तर की हवा तुरंत प्रभावित नहीं होगी, लेकिन ऊपरी परत में मौजूद सूक्ष्म कण मौसम की स्थिरता को बदल सकते हैं। यदि हवा ठंडी हुई या नमी बढ़ी, तो यह कण नीचे की परत की ओर खिसक सकते हैं।

दिल्ली के लिए विशेष चिंता क्यों?

दिल्ली पहले ही शीत ऋतु में प्रदूषण के चरम पर होती है। हवा स्थिर रहती है, धूल ऊपर उठकर वापस नीचे बैठ जाती है और जलना, वाहन धुआँ और औद्योगिक प्रदूषण लगातार स्तर बढ़ाते रहते हैं।

इस स्थिति में ज्वालामुखीय राख, भले ऊपरी स्तर पर ही क्यों न हो, वातावरण को अस्थिर कर सकती है। जब हवा की दिशा पूर्व की ओर मुड़ती है, तो ऊपरी परत के कण धीरे-धीरे नीचे आने लगते हैं।

इशारा: दिल्ली जैसी संवेदनशील जगहों में छोटी-सी अतिरिक्त प्रदूषक मात्रा भी तेजी से AQI बढ़ा सकती है।

क्या यह राख जमीन तक आएगी?

वैज्ञानिकों का कहना है कि फिलहाल राख ऊँचे स्तर पर है, इसलिए सीधे जमीन तक पहुंचने की संभावना कम है। लेकिन यदि कोई मौसमीय प्रणाली जैसे पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होता है, या हवा का दबाव घटता-बढ़ता है, तो यह कण नीचे खिसक सकते हैं।

  • ठंडी हवा का जमाव बढ़े
  • हवा की गति कम हो
  • नमी अचानक बढ़े
  • या बादल बनें

इन स्थितियों में राख का घनत्व नीचे की ओर बढ़ सकता है।

ज्वालामुखीय राख का मानव शरीर पर असर

राख सामान्य धूल से अधिक खतरनाक होती है क्योंकि इसमें सूक्ष्म कांच और सिलिका जैसे तत्व होते हैं। ये बहुत हल्के होने के कारण हवा में लंबे समय तक तैरते रहते हैं।

समस्यासंभावित असर
आँखों में जलनलालिमा, पानी आना
नाक-जाम होनासांस में दिक्कत
फेफड़ों में जलनखांसी, सीने में भारीपन
एलर्जीतेज प्रतिक्रिया

इन प्रतिक्रियाओं का खतरा ज़्यादा उन लोगों में है जिनके फेफड़े पहले से संवेदनशील हैं।

हवाई यात्रा पर बड़ा प्रभाव

हवाई जहाज़ों के इंजन अत्यंत तेज़ तापमान पर चलते हैं। जब ज्वालामुखीय कांच जैसे कण इंजन में जाते हैं तो यह पिघलकर धातु की सतह पर जम सकते हैं। इससे इंजन रुकने का खतरा पैदा होता है।

इसी कारण कई अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर उड़ानों का मार्ग बदला गया, कुछ उड़ानें देर से चलीं और कुछ अस्थायी रूप से रद्द करनी पड़ीं।

उदाहरण: 2010 में आइसलैंड के Eyjafjallajökull ज्वालामुखी विस्फोट के बाद यूरोप में हवाई सेवाएँ दिनों तक बंद रहीं।

यह राख भारत में कितने समय रहेगी?

मौसम विभाग के अनुसार राख-बादल ऊँचे स्तर पर तेज़ गति से आगे बढ़ रहा है। इस प्रकार यह भारत के ऊपर बहुत लंबे समय नहीं टिकेगा।

लेकिन जब तक यह गुजर रहा है, तब तक संवेदनशील क्षेत्रों, विशेषकर उत्तर भारत, को सावधानी बरतनी होगी।

क्या यह घटना बार-बार हो सकती है?

Hayli Gubbi ज्वालामुखी पिछले हजारों वर्षों से शांत था। लगातार सक्रिय होने की संभावना कम है, लेकिन पृथ्वी के आंतरिक दबावों को देखते हुए इसे पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।

भू-वैज्ञानिक अब इसकी गतिविधि पर नज़र रख रहे हैं और आने वाले दिनों में और अद्यतन जानकारी जारी कर सकते हैं।

लोगों को क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?

हालाँकि जोखिम सीमित है, फिर भी जागरूक रहना आवश्यक है।

  • बाहर निकलते समय N95 मास्क लगाएँ
  • खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद रखें
  • एयर-प्यूरीफायर हो तो चालू रखें
  • सूखी झाड़ू के बजाय गीले कपड़े से सफाई करें
  • आँखों में जलन होने पर ठंडे पानी से धोएँ
  • सांस में परेशानी पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें

यह सावधानियाँ किसी भी प्रकार की सूक्ष्म कणों वाली स्थिति में जरूरी होती हैं।

क्या आने वाले दिनों में खतरा बढ़ सकता है?

वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि फिलहाल यह खतरा “सीमित” है। लेकिन यदि हवा की दिशा बदली और राख का बादल नीचे आया, तो प्रदूषण का स्तर बढ़ सकता है।

उत्तर भारत की हवा स्थिर रहती है, इसलिए यहाँ जागरूकता अधिक जरूरी है।

पर्यावरण पर ज्वालामुखीय राख का प्रभाव

ज्वालामुखी विस्फोट केवल हवा को प्रभावित नहीं करता, बल्कि वातावरण के बड़े हिस्से पर इसका असर फैलता है। ऊँची परतों में राख सूर्य की रोशनी को रोकती है, जिससे तापमान में हल्का बदलाव हो सकता है। कई बार ऊपरी परत में धुंध जैसा दृश्य बन जाता है, जिससे सूर्य की किरणें कम महसूस होती हैं।

यदि राख-बादल घना हो तो यह बादलों के निर्माण को प्रभावित कर सकता है। हवा में नमी के साथ सूक्ष्म कण जुड़ जाते हैं और मौसम अस्थिर हो सकता है। इस कारण कुछ जगहों पर हल्की बदली, धुँध या धुंधलापन देखे जाने की संभावना रहती है।

कृषि पर संभावित प्रभाव

वर्तमान राख-बादल जमीन तक नहीं पहुँचा है, इसलिए फसलों पर सीधा असर नहीं पड़ेगा। लेकिन यदि राख नीचे आती है, तो पौधों की पत्तियों पर हल्की परत जम सकती है। इससे प्रकाश संश्लेषण में रुकावट होती है और पौधे धूप को ठीक से नहीं ले पाते।

हालाँकि भारत तक पहुँचने वाली राख बहुत पतली और हल्की है, इसलिए कृषि पर नुकसान की संभावना कम मानी जा रही है।

स्वास्थ्य विभाग की क्या तैयारी?

कई राज्यों के स्वास्थ्य विभाग स्थिति पर निगरानी रख रहे हैं। अस्पतालों को सांस संबंधी मरीजों के लिए विशेष सावधानी बरतने को कहा गया है।

  • अस्थमा मरीजों के लिए सलाह जारी
  • आपातकालीन दवाओं का अतिरिक्त भंडार
  • बुजुर्ग और बच्चों पर विशेष ध्यान
  • समय-समय पर स्थिति अपडेट

यदि राख-बादल नीचे उतरता है या हवा का स्तर खराब होता है, तो विभाग आवश्यक चेतावनियाँ जारी करेंगे।

वैज्ञानिक राख-बादल की दिशा कैसे ट्रैक करते हैं?

राख-बादल को ट्रैक करने के लिए उपग्रह चित्र, हवा की गति और ऊँचाई के आंकड़ों का उपयोग किया जाता है। European Satellite Data और India's atmospheric मॉडलों की मदद से राख की गति और स्थिति का अनुमान लगाया जाता है।

वैज्ञानिक कम्प्यूटरीकृत मॉडल का उपयोग करते हैं, जो हवा की दिशा, तापमान, नमी और वायुदाब के आधार पर राख की यात्रा को ट्रैक करता है।

उपकरणउपयोग
उपग्रह चित्रराख का वास्तविक आकार और दिशा
हवा के आंकड़ेराख की गति का अनुमान
वायुदाब विश्लेषणऊपर या नीचे जाने की संभावना

लोग घबराएँ नहीं, जागरूक रहें

ज्वालामुखीय राख का नाम सुनकर लोग घबरा जाते हैं, लेकिन भारत तक पहुँचने वाली राख बहुत ऊँचे स्तर पर है। इसका प्रभाव सीमित है, फिर भी जागरूक रहना जरूरी है।

जैसे ही हवा की दिशा बदलेगी, राख-बादल भारत से बाहर निकल जाएगा। लेकिन संवेदनशील लोग एहतियात जारी रखें।

सबसे उपयोगी सुरक्षा नियम

  • N95 मास्क का उपयोग
  • खिड़कियाँ बंद रखना
  • घर में गीली सफाई
  • एयर-प्यूरीफायर का उपयोग
  • आँखों में जलन होने पर ठंडा पानी
  • सीने में जलन या खांसी पर जांच कराना

सुझाव: सूखे कपड़े या झाड़ू से सफाई न करें। इससे कण हवा में फैलते हैं।

क्या हवा की गुणवत्ता और खराब हो सकती है?

फिलहाल हवा की गुणवत्ता में बड़ा बदलाव अनुमानित नहीं है। लेकिन दिल्ली और उत्तर भारत की संवेदनशीलता को देखते हुए हवा का स्तर कुछ क्षेत्रों में प्रभावित हो सकता है।

यदि तापमान गिरा, हवा स्थिर हुई या नमी बढ़ी, तो राख के कण नीचे खिसक सकते हैं। ऐसे में AQI बढ़ सकता है।

कितने दिन तक सतर्क रहना होगा?

मौसम विभाग के अनुसार राख-बादल तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इसलिए यह भारत के ऊपर लंबे समय तक नहीं रुकेगा। अगले कुछ दिनों में हवा की स्थिति स्पष्ट करेगी कि यह कितना असर करेगा।

जब तक यह गुजर न जाए, तब तक सावधानियाँ रखना बिल्कुल ज़रूरी है।

अंतिम निष्कर्ष

इथियोपिया के Hayli Gubbi ज्वालामुखी का अचानक सक्रिय होना एक बड़ी प्राकृतिक घटना है। इसकी राख ऊपरी वायुमंडलीय स्तर पर भारत तक पहुंची है, लेकिन अभी तक खतरा सीमित है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि सामान्य लोगों के लिए तत्काल जोखिम कम है, लेकिन संवेदनशील लोगों को सावधानी रखनी चाहिए। आने वाले दिनों में हवा की दिशा और वायुमंडलीय परिवर्तन स्थिति को अधिक स्पष्ट करेंगे।

जागरूक रहना, सही जानकारी रखना और आवश्यक सावधानियाँ अपनाना ही सबसे बेहतर उपाय है।

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