चीन के तियानजिन शहर से आज एक बहुत बड़ी खबर आई है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक ख़ास बैठक हुई है। यह मुलाक़ात बहुत ज़्यादा अहम है। क्योंकि पिछले पांच सालों से दोनों देशों के रिश्ते बहुत तनावपूर्ण चल रहे थे। 2020 में सीमा पर हुई हिंसक झड़प के बाद यह प्रधानमंत्री मोदी का पहला चीन दौरा है। इस बैठक को दोस्ती की ओर एक नए कदम की तरह देखा जा रहा है।
आपको याद होगा, लद्दाख में सीमा विवाद के बाद से ही भारत और चीन के बीच बातचीत लगभग बंद हो गई थी। दोनों देशों ने सीमा पर अपनी सेनाएं बढ़ा दी थीं। माहौल बहुत गंभीर था। ऐसे में, दोनों नेताओं का मिलना और गर्मजोशी दिखाना एक बड़ा सकारात्मक संकेत है। दोनों ने माना कि सीमा विवाद एक मुश्किल मुद्दा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इस एक वजह से पूरे रिश्ते को खराब नहीं होने देना चाहिए।
इस बैठक से कई अच्छी बातें निकलकर सामने आईं। सबसे पहले, दोनों देश सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए बातचीत तेज़ करेंगे। इसका मकसद यह है कि भविष्य में फिर कभी 2020 जैसी घटना न हो। लोगों के लिए एक बड़ी खुशखबरी यह है कि दोनों देशों के बीच सीधी हवाई उड़ानें फिर से शुरू हो सकती हैं। इसके साथ ही, हिंदुओं की पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा को भी दोबारा शुरू करने पर सहमति बनी है। यह यात्रा कोरोना और सीमा विवाद के कारण बंद हो गई थी।
आर्थिक मोर्चे पर भी अच्छी खबर है। चीन ने भारत के लिए कुछ ज़रूरी सामानों के निर्यात पर लगी रोक हटाने का वादा किया है। इससे भारत के उद्योगों और किसानों को काफ़ी मदद मिलेगी। बदले में भारत ने भी संकेत दिया है कि वह व्यापार बढ़ाने के लिए तैयार है।
इस मुलाक़ात का समय भी बहुत ख़ास है। एक तरफ भारत पर अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों का दबाव है। वहीं, चीन भी अपनी अर्थव्यवस्था और दूसरे देशों से तनाव को लेकर परेशान है। ऐसे में यह बैठक दिखाती है कि भारत और चीन बाहरी दबाव से हटकर अपने फैसले खुद लेना चाहते हैं। वे दुनिया को यह संदेश दे रहे हैं कि एशिया का भविष्य एशियाई देश ही तय करेंगे।
हालांकि, सब कुछ इतना आसान भी नहीं है। दोनों देशों के बीच भरोसे की कमी अब भी एक बड़ी चुनौती है। भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि सीमा पर पूरी तरह से शांति तभी होगी, जब वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थिति साफ़ हो। इसके अलावा, भारत चीन के साथ अपने भारी व्यापार घाटे को लेकर भी चिंतित है।
कुल मिलाकर, तियानजिन में हुई यह बैठक एक नई और उम्मीद भरी शुरुआत है। इसने सालों से बंद पड़े बातचीत के दरवाजे खोल दिए हैं। अगर दोनों देश इसी तरह आगे बढ़ते रहे, तो यह न सिर्फ़ उनके लिए, बल्कि पूरे एशिया के लिए एक शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य की नींव रख सकता है।

