भारत की अर्थव्यवस्था आज दुनिया की सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में है। यह सफ़र आसान नहीं था। 1960 के दशक में देश की आय का बड़ा हिस्सा कृषि से आता था। कुछ ही राज्य अग्रिम पंक्ति में थे। समय के साथ उद्योग, सेवाओं और तकनीक ने खेल बदल दिया। अब तस्वीर अलग है। इस लेख में हम सरल भाषा में समझेंगे कि 1960–61 से 2023–24 तक भारत की GDP में शीर्ष 5 राज्यों का योगदान कैसे बदला, क्यों बदला और आगे क्या उम्मीद की जा सकती है।
2023–24 में: महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित), उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड सहित), तमिलनाडु, कर्नाटक शीर्ष पर हैं।
1960–61 में भारत की GDP में शीर्ष 5 राज्य
आज़ादी के बाद के पहले दो दशकों में अर्थव्यवस्था ग्रामीण और कृषि प्रधान थी। उत्पादन का फ़ोकस खेतों और खनन पर था। उसी दौर में कुछ राज्य जनसंख्या, उपज और संसाधनों के आधार पर आगे थे।
1) उत्तर प्रदेश – 14.4% (उत्तराखंड सहित)
उस समय सबसे बड़ा योगदान उत्तर प्रदेश का था। उपजाऊ खेत, बड़ी आबादी और गन्ना, गेहूं, धान की ऊंची पैदावार इसकी ताक़त थी। लखनऊ, कानपुर, वाराणसी जैसे शहर कुटीर और हल्के उद्योगों के केंद्र थे। राज्य का आकार और कृषि ने मिलकर GDP में बड़ा हिस्सा दिया।
2) महाराष्ट्र – 12.5%
मुंबई तब भी वित्तीय केंद्र था। कपड़ा मिलें, बंदरगाह और व्यापारिक संपर्क मजबूत थे। उद्योगों की शुरुआती बुनियाद यहां पड़ी, जिस पर आगे चलकर भारी इमारत बनी। इसलिए 1960 के दशक में भी महाराष्ट्र शीर्ष सूची में था।
3) पश्चिम बंगाल – 10.5%
कोलकाता देश की व्यापारिक राजधानी कहलाता था। कोयला, इस्पात और बंदरगाह गतिविधियां प्रचुर थीं। पर आगे के दशकों में उद्योगों के पलायन और नीतिगत मुद्दों से गति धीमी हुई।
4) तमिलनाडु – 8.7%
दक्षिण का प्रमुख औद्योगिक केंद्र। कपड़ा, चमड़ा, मशीनरी और कृषि प्रसंस्करण इकाइयां बड़ी संख्या में थीं। मद्रास (चेन्नई) व्यापार का द्वार था। शिक्षा और तकनीकी संस्थानों का आधार भी यहीं बना।
5) बिहार – 7.8% (झारखंड सहित)
संसाधन समृद्ध क्षेत्र। कोयला, लौह अयस्क और खनिजों ने भूमिका निभाई। मगर शिक्षा और ढांचे की सीमाएं आगे चलकर विकास की रफ्तार को रोकती रहीं।
2023–24 में भारत की GDP में शीर्ष 5 राज्य
अब तस्वीर बदल चुकी है। सेवा और उद्योग ने नेतृत्व संभाला है। तकनीक, वित्त, निर्माण, लॉजिस्टिक्स और फार्मा प्रमुख चालकों में हैं।
1) महाराष्ट्र – 13.3%
आज सबसे बड़ा योगदान महाराष्ट्र देता है। मुंबई वित्त और कॉर्पोरेट का मुख्यालय है। पुणे, नासिक और नागपुर में ऑटो, आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स और सेवाओं का विस्तार हुआ है। बड़े बुनियादी ढांचे और गहरे बाज़ार ने इसे स्थिर लीड दिलाई।
2) आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित) – 9.7%
हैदराबाद आईटी और स्टार्टअप का बड़ा केंद्र बना। फार्मा, एयरोस्पेस, डेटा सेंटर्स और रियल एस्टेट गतिविधि तेज़ रही। कृषि और लॉजिस्टिक्स ने भी सहारा दिया। विभाजन के बाद भी संयुक्त हिस्सेदारी ऊंची बनी रही।
3) उत्तर प्रदेश – 9.5% (उत्तराखंड सहित)
स्थान तीसरा है। हाल के वर्षों में एक्सप्रेसवे, औद्योगिक गलियारे, डिफेंस कॉरिडोर और विनिर्माण निवेश से गति आई है। बड़े घरेलू बाज़ार और उपभोग क्षमता इसके प्रमुख आधार हैं।
4) तमिलनाडु – 8.9%
ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, आईटी और नवीकरणीय ऊर्जा का मजबूत मिश्रण। स्थिर नीति माहौल और कुशल मानव संसाधन इसकी ताकत हैं। विदेशी निवेश लगातार आता है।
5) कर्नाटक – 8.2%
बेंगलुरु देश की तकनीकी राजधानी है। सॉफ्टवेयर सेवाएं, चिप डिजाइन, बायोटेक और एयरोस्पेस गतिविधि तेज़ है। उच्च शिक्षा और स्टार्टअप इकोसिस्टम ने इसकी हिस्सेदारी बढ़ाई।
रंगीन तुलना तालिका
नीचे 1960–61 और 2023–24 के शीर्ष 5 राज्यों की तुलना एक नज़र में दी गई है: EAC-PM
- शीर्ष स्थान कृषि से सेवा और उद्योग की ओर खिसका।
- महाराष्ट्र ने वित्त और विनिर्माण से लीड बनाए रखी।
- दक्षिण भारत में शिक्षा और कौशल ने बड़ा फर्क बनाया।
60 साल में बदलाव क्यों हुआ?
1) कृषि से सेवा क्षेत्र की ओर बदलाव
शुरुआत में आय का बड़ा हिस्सा खेतों से आता था। धीरे-धीरे बैंकिंग, आईटी, टेलीकॉम, रिटेल और शिक्षा का दायरा बढ़ा। जिन राज्यों ने इन क्षेत्रों में जल्दी निवेश और प्रशिक्षण किया, वे तेजी से आगे निकले।
2) औद्योगिकीकरण और निवेश
उद्योग के लिए बिजली, सड़क, बंदरगाह और नीति चाहिए। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक ने यह आधार मजबूत किया। क्लस्टर बने, आपूर्ति श्रृंखला विकसित हुई और रोजगार पैदा हुए।
3) शिक्षा और मानव संसाधन
दक्षिण भारत ने स्कूल से लेकर इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट तक पर लगातार निवेश किया। कुशल मानव संसाधन मिलने से आईटी, ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियां वहां गईं। इससे राज्य की आय बढ़ी।
4) ढांचा और कनेक्टिविटी
बंदरगाह, एयरपोर्ट, हाईवे और औद्योगिक पार्क से व्यापार सस्ता और तेज़ होता है। निवेशक ऐसे राज्यों में कारखाने लगाना पसंद करते हैं जहां लॉजिस्टिक्स आसान हो।
5) नीति और शासन
स्थिर और उद्योग-हितैषी नीति माहौल भरोसा पैदा करता है। मंजूरी प्रक्रिया सरल हो, भूमि और बिजली की उपलब्धता हो, तो निवेश तेजी से आता है। जहां अस्थिरता रही, वहां विकास की रफ्तार धीमी हुई।
कौन पीछे रह गया और क्यों?
1960 के दशक में पश्चिम बंगाल और बिहार शीर्ष 5 में थे। आगे चलकर ये सूची से बाहर हो गए। इसके पीछे कई कारण हैं।
- उद्योगों का धीरे-धीरे बाहर जाना।
- नीतिगत अनिश्चितता और निवेश में कमी।
- नए क्लस्टर दक्षिण और पश्चिम भारत में शिफ्ट हुए।
- बुनियादी ढांचे की कमी और निवेश आकर्षित करने में चुनौती।
- शिक्षा और कौशल में अंतर।
- प्रशासनिक क्षमता और शहरीकरण की गति धीमी।
आगे की दिशा: किन राज्यों पर नज़र रहे?
अगले दशक में कुछ बड़े रुझान असर डालेंगे। घरेलू मांग, निर्यात, तकनीक और हरित ऊर्जा मुख्य चालकों में होंगे।
- उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे, डिफेंस कॉरिडोर और मैन्युफैक्चरिंग से हिस्सेदारी बढ़ सकती है।
- गुजरात में पोर्ट-आधारित उद्योग, हरित हाइड्रोजन और इलेक्ट्रॉनिक्स का विस्तार तेज़ है।
- कर्नाटक और तेलंगाना में सेमीकंडक्टर, डीप-टेक और एआई क्लस्टर उभर रहे हैं।
- पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी सुधरने से नई संभावनाएं बनेंगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
भारत की GDP में राज्यों की हिस्सेदारी कैसे मापी जाती है?
क्या ज्यादा आबादी वाले राज्य हमेशा शीर्ष पर रहते हैं?
1960–61 से 2023–24 में सबसे बड़ा बदलाव क्या है?
क्या बिहार और पश्चिम बंगाल फिर से शीर्ष 5 में आ सकते हैं?
डेटा का स्रोत किस तरह के संस्थान होते हैं?
निष्कर्ष
पिछले छह दशकों में भारत के आर्थिक नक्शे में गहरी शिफ्ट दिखती है। 1960–61 में जहां कृषि और संसाधन प्रधान राज्य आगे थे, वहीं 2023–24 में सेवा, तकनीक और औद्योगिकीकरण प्रमुख चालक हैं। महाराष्ट्र की लीड, तमिलनाडु की निरंतरता, कर्नाटक का उभार और उत्तर प्रदेश की दोबारा रफ्तार इस कहानी के मुख्य अध्याय हैं। जिन राज्यों ने शिक्षा, ढांचे और नीति पर निवेश किया, वे आगे निकले। यही दिशा भविष्य को भी तय करेगी।

