नोएडा के जेवर इलाके से जुड़ा एक दहेज हत्या का मामला हाल ही में चर्चा में रहा। यह मामला साल 2022 का है जब दुर्गेश नाम की युवती की संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी। दुर्गेश की शादी वर्ष 2020 में हुई थी। शादी के दो साल बाद उसकी ससुराल में फांसी लगाकर मौत की खबर सामने आई। मृतका के परिवार ने शुरू में पति प्रदीप और कुछ परिजनों पर दहेज उत्पीड़न और हत्या का आरोप लगाया था। मामला दर्ज हुआ और आरोप पत्र में भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 323, 506, 304बी और दहेज निषेध अधिनियम की धाराएं लगाई गईं।
पुलिस की जांच रिपोर्ट के आधार पर केस अदालत तक पहुंचा। अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने की कोशिश की कि मृतका को लगातार दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था। परिवार वालों ने एफआईआर में भी यही आरोप लगाया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण फांसी से दम घुटना बताया गया था। कानून के अनुसार सात साल के भीतर हुई शादी में महिला की अस्वाभाविक मौत होने पर धारा 304बी लागू की जाती है। ऐसे मामलों में सबूत मिलने पर अदालत धारा 113बी के तहत यह मान सकती है कि मौत दहेज से जुड़ी है।
लेकिन सुनवाई के दौरान हालात पलट गए। मृतका के पिता महावीर और मां दोनों ने गवाही में अपने पहले दिए गए बयान से मुकर गए। उन्होंने कहा कि उन्हें शिकायत लिखने का पूरा मतलब नहीं पता था और उन्होंने दबाव में आरोप लगाए थे। दोनों ने अदालत में यह स्वीकार नहीं किया कि उनकी बेटी को दहेज के लिए सताया जाता था। यह गवाही अभियोजन पक्ष के लिए सबसे बड़ा झटका साबित हुई। अदालत ने कहा कि जब मुख्य गवाह ही आरोपों को साबित करने से पीछे हट गए हैं तो अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध नहीं कर सका।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि धारा 113बी के तहत तभी अनुमान लगाया जा सकता है जब साबित हो कि महिला को मौत से ठीक पहले दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था। इस मामले में ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका। केवल संदेह या शुरुआती आरोप पर्याप्त नहीं हैं। अदालत ने साफ कहा कि आरोप सिद्ध न होने की स्थिति में आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
फैसले में यह भी दर्ज किया गया कि अभियोजन पक्ष की कमजोर गवाही और गवाहों के पलटने के कारण आरोपियों को दोषमुक्त किया जाता है। नतीजतन पति प्रदीप को अदालत ने बरी कर दिया। इस फैसले के बाद आरोपी जेल से रिहा हो गया।
यह मामला एक बार फिर यह सवाल उठाता है कि दहेज से जुड़ी मौतों में सख्त कानून होने के बावजूद जब गवाह अपने बयान बदल देते हैं तो न्याय प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है। अदालत ने कहा कि न्याय केवल साक्ष्य और प्रमाण पर आधारित होता है, भावनाओं या शुरुआती आरोपों पर नहीं।
यह खबर समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है कि दहेज हत्या जैसे गंभीर मामलों में गवाही का महत्व कितना बड़ा होता है। अगर गवाह अपने बयान से पलटते हैं तो आरोपी बरी हो जाता है और न्याय अधूरा रह जाता है।