स्क्रीन टाइम और वर्चुअल ऑटिज्म का बढ़ता खतरा
मोबाइल, टीवी और टैबलेट रोजमर्रा का हिस्सा बन गए हैं। इसी आदत से नई चिंता सामने आई है। इसे वर्चुअल ऑटिज्म कहा जा रहा है। यह ऑटिज्म जैसा दिखता है। पर इसका कारण स्क्रीन पर अधिक समय है।
आजकल बच्चों की दिनचर्या में स्क्रीन टाइम तेजी से बढ़ रहा है। मोबाइल, टीवी और टैबलेट उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन गए हैं। लेकिन इसी आदत से एक नई चिंता सामने आई है। इसे “वर्चुअल ऑटिज्म” कहा जा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि यह ऑटिज्म जैसा दिखता है, लेकिन इसका कारण स्क्रीन टाइम है।
वर्चुअल ऑटिज्म आखिर क्या होता है
बच्चों में देखे जाने वाले प्रमुख लक्षण
लंबा स्क्रीन समय व्यवहार बदल देता है। नीचे रंगीन तालिका में मुख्य लक्षण देखें।
लक्षण | विवरण |
---|---|
बोलने में देरी | शब्द देर से शुरू होते हैं। वाक्य छोटे रह जाते हैं। |
सामाजिक दूरी | परिवार और दोस्तों से बातचीत कम हो जाती है। |
ध्यान की कमी | पढ़ाई और खेल में फोकस टूटता है। |
भावनात्मक कमी | हंसना, रोना और प्रतिक्रिया कम दिखती है। |
कल्पनाशीलता में गिरावट | खेल में रचनात्मकता घटती है। |
रिसर्च क्या बताती है बच्चों पर
अध्ययन बताते हैं कि तीन साल से कम उम्र पर असर ज्यादा होता है। अगर रोज चार घंटे से अधिक स्क्रीन दी जाए तो ऑटिज्म जैसे लक्षण बढ़ते हैं। भारत में डॉक्टर भी यही चेतावनी दे रहे हैं। तुरंत शांति के लिए मोबाइल देना आदत बना देता है। लंबी अवधि में विकास धीमा हो सकता है।
वर्चुअल ऑटिज्म कितना खतरनाक हो सकता है
- भाषा विकास में धीमापन दिख सकता है।
- दोस्तों से दूरी और कम सहभागिता हो सकती है।
- आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
- घर में चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में गिरावट आ सकती है।
क्या वर्चुअल ऑटिज्म ठीक हो सकता है
अक्सर यह ठीक हो जाता है। स्क्रीन समय घटाएं। वास्तविक खेल और बातचीत बढ़ाएं। जरूरत हो तो स्पीच या ऑक्यूपेशनल थेरेपी लें। शुरुआती कदम जल्दी परिणाम देते हैं।
बच्चों को बचाने के लिए क्या करें
स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण कैसे रखें
- छोटे बच्चों के लिए रोजाना एक घंटे से कम रखें।
- सोने से पहले स्क्रीन बिल्कुल ना दें।
- लंबे सत्रों के बीच छोटे ब्रेक दें।
खेल और रचनात्मक गतिविधियाँ बढ़ाएँ
- आउटडोर खेल रोजाना शामिल करें।
- कहानियाँ, चित्रकारी और संगीत कराएँ।
- परिवार के साथ बातचीत का समय तय करें।
ऑनलाइन पढ़ाई का संतुलन बनाएं
- क्लास के बाद ऑफ-स्क्रीन गतिविधियाँ कराएँ।
- डिवाइस सेटिंग में ऐप लिमिट लगाएँ।
- स्क्रीन को रिवार्ड की तरह इस्तेमाल न करें।
डॉक्टरों की राय और सुझाव
डॉक्टर मानते हैं कि वर्चुअल ऑटिज्म को गंभीरता से लेना चाहिए। यह सिर्फ आदत का मामला नहीं है, बल्कि बच्चे के मानसिक विकास से जुड़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता बच्चों को डिजिटल बेबीसिटर की तरह मोबाइल न दें। बच्चे का ध्यान खेल, परिवार और पढ़ाई की ओर मोड़ना ज़रूरी है।
अक्सर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण सवाल
वर्चुअल ऑटिज्म असली ऑटिज्म जैसा क्यों दिखता है?
क्योंकि स्क्रीन अधिक होने से भाषा, ध्यान और सामाजिक कौशल प्रभावित होते हैं। लक्षण मिलते-जुलते दिखते हैं पर यह स्थायी नहीं होते।
कितना स्क्रीन टाइम बच्चों के लिए सुरक्षित माना जाता है?
आम तौर पर छोटे बच्चों के लिए रोजाना एक घंटे से कम बेहतर है। बीच-बीच में ब्रेक दें और परिवारिक खेल बढ़ाएँ।
कब डॉक्टर से तुरंत मिलना चाहिए?
यदि बच्चा आँख से संपर्क कम करे, बोलना बहुत देर से शुरू करे, या सामाजिक सहभागिता घटे तो बाल रोग विशेषज्ञ से सलाह लें।