रूस से एक बड़ी खबर आई है। वहां की मेडिकल एजेंसी एफएमबीए ने कहा है कि उसने कोलन कैंसर के लिए एक नई वैक्सीन बनाई है। इस वैक्सीन को लेकर दावा किया गया है कि यह ट्यूमर का आकार कम कर सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स ने इसे “तैयार वैक्सीन” के रूप में पेश किया। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या यह दावा सच में इतना मजबूत है कि मरीजों के लिए तुरंत राहत की उम्मीद की जा सके?
कैंसर वैक्सीन सामान्य वैक्सीन से अलग होती है। यह किसी वायरस से बचाने के लिए नहीं बल्कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने के लिए बनाई जाती है। इसका मकसद है कि शरीर खुद कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर उन पर हमला करे। यह विचार नया नहीं है, लेकिन इसे सफल बनाना बहुत मुश्किल काम है।
रूस की एजेंसी का कहना है कि उनके प्रयोग में अच्छे परिणाम मिले हैं। जानवरों और शुरुआती मॉडल पर हुए परीक्षण में ट्यूमर का आकार 60 से 80 प्रतिशत तक घटा। यह आंकड़ा सुनकर लगता है कि इलाज की दिशा में एक बड़ा कदम उठा लिया गया है। लेकिन हकीकत यह है कि यह स्टेज अभी बहुत शुरुआती है।
किसी भी नई दवा या वैक्सीन को मरीजों तक पहुंचने में लंबा समय लगता है। पहले चरण में इसे लैब और जानवरों पर टेस्ट किया जाता है। अगर वहां परिणाम अच्छे आते हैं तो छोटे पैमाने पर मनुष्यों पर फेज-1 ट्रायल होता है। इसमें देखा जाता है कि वैक्सीन कितनी सुरक्षित है और शरीर पर उसका असर कैसा पड़ता है। इसके बाद फेज-2 और फेज-3 होते हैं, जहां बड़ी संख्या में मरीजों पर इसका असर परखा जाता है।
फिलहाल जो जानकारी सामने आई है, वह केवल शुरुआती स्टेज तक सीमित है। यानी रूस ने प्री-क्लिनिकल डेटा पेश किया है। कुछ खबरों में यह भी कहा गया है कि फेज-1 यानी शुरुआती मानव परीक्षण शुरू किए गए हैं। लेकिन बड़े पैमाने के ट्रायल और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समीक्षा अभी बाकी हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि “वैक्सीन तैयार” कहना सही नहीं है। तैयार होने का मतलब है कि मरीजों को तुरंत इसका फायदा मिल सके। लेकिन अभी ऐसा नहीं है। इसे मंजूरी मिलने और सुरक्षित साबित होने में काफी समय लग सकता है।
फिर भी यह खबर महत्वपूर्ण है। दुनिया भर में कोलन कैंसर तेजी से फैल रहा है। भारत में भी इसकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। इलाज के पारंपरिक तरीके जैसे सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी अभी भी मुख्य विकल्प हैं। अगर वैक्सीन काम करती है, तो यह भविष्य में इन मरीजों के लिए बड़ी उम्मीद हो सकती है।
रूस का कहना है कि वह जल्द ही वैक्सीन को रजिस्ट्रेशन और अप्रूवल के लिए भेजेगा। लेकिन हर देश में दवा मंजूरी के अपने नियम होते हैं। भारत में डीसीजीआई, अमेरिका में एफडीए और यूरोप में ईएमए जैसे संस्थान बिना जांच के किसी वैक्सीन को हरी झंडी नहीं देते।
वैज्ञानिक मानते हैं कि शुरुआती दावे कई बार आगे चलकर साबित नहीं हो पाते। रिसर्च में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां शुरुआती स्टेज में दवाएं असरदार दिखीं लेकिन बाद के ट्रायल में असफल रहीं। यही वजह है कि इस तरह की खबरों पर संयम और सावधानी से विश्वास करना चाहिए।
भारत के विशेषज्ञों ने भी यही राय दी है। उनका कहना है कि यह दावा उत्साह बढ़ाने वाला जरूर है लेकिन इसे इलाज की नई शुरुआत मान लेना जल्दबाजी होगी। कैंसर वैक्सीन का विकास समय लेने वाली प्रक्रिया है। सुरक्षा और असर दोनों साबित करने में कई साल लग जाते हैं।
रूस पहले भी इस तरह के दावे कर चुका है। कोविड-19 महामारी के दौरान रूस ने स्पुतनिक-वी वैक्सीन जल्दी लॉन्च कर दी थी। उस समय इसे लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली थी। इसलिए इस बार वैज्ञानिक और भी सतर्क हैं।
इस पूरी घटना का एक सकारात्मक पहलू जरूर है। यह दिखाता है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कैंसर पर रिसर्च तेज़ी से चल रही है। हर नया कदम मरीजों के लिए उम्मीद की किरण है। लेकिन जब तक बड़े पैमाने पर डेटा और अंतरराष्ट्रीय समीक्षा सामने नहीं आती, तब तक इसे पुख्ता इलाज नहीं कहा जा सकता।
सोशल मीडिया पर यह खबर तेजी से फैल रही है। लोग इसे उम्मीद और इलाज की नई शुरुआत के रूप में देख रहे हैं। लेकिन जिम्मेदारी के साथ खबर पढ़ना जरूरी है। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह वैक्सीन मरीजों तक कब पहुंचेगी।
संक्षेप में कहा जाए तो रूस का दावा उत्साहजनक है, लेकिन अधूरा है। रिसर्च का रास्ता लंबा है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि यह वैक्सीन बड़े क्लिनिकल ट्रायल में कितनी सफल होती है। तभी पता चलेगा कि मरीजों के लिए यह सच में कितनी कारगर है।

