आजकल हर जगह H-1B वीज़ा की चर्चा हो रही है। अखबार, टीवी और सोशल मीडिया—सब जगह यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है। इसकी वजह है अमेरिका सरकार का नया नियम। अब H-1B वीज़ा के लिए हर साल 1 लाख डॉलर फीस देनी होगी। यह खबर सुनकर भारत में चिंता बढ़ गई है।
क्योंकि भारत से सबसे ज्यादा लोग हर साल H-1B वीज़ा पर अमेरिका जाते हैं। खासकर IT और टेक्नोलॉजी सेक्टर के लोग। भारत की बड़ी कंपनियाँ भी इसी वीज़ा के सहारे अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजती रही हैं। अब यह नियम उनके लिए बड़ा झटका है।
H-1B वीज़ा क्या है?
H-1B वीज़ा अमेरिका का एक वर्क वीज़ा है। इसके जरिए अमेरिका की कंपनियाँ बाहर से स्किल्ड वर्कर्स बुला सकती हैं। यह वीज़ा खासकर इंजीनियर, सॉफ्टवेयर डेवलपर, डॉक्टर और साइंस से जुड़े प्रोफेशनल्स के लिए ज्यादा इस्तेमाल होता है।
हर साल लगभग 65,000 नए वीज़ा और 20,000 अतिरिक्त वीज़ा (स्टूडेंट्स के लिए) दिए जाते हैं। भारत के लिए यह वीज़ा बहुत मायने रखता है। क्योंकि हर साल 70% से ज्यादा H-1B वीज़ा भारतीयों को ही मिलते हैं।
नया नियम क्या कहता है?
अमेरिका ने एक बड़ा बदलाव किया है। अब नए H-1B वीज़ा आवेदनों के लिए 100,000 डॉलर की अतिरिक्त फीस (सप्लीमेंटल पेमेंट) देनी होगी। यह फीस मौजूदा आवेदन फीस ($460-$2,805) के अतिरिक्त है और केवल नए पेटिशन्स पर लागू होगी, जो फरवरी 2026 की लॉटरी से शुरू होंगे। मौजूदा H-1B वीज़ा होल्डर्स या रिन्यूअल्स पर यह फीस लागू नहीं होगी।
हालांकि, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने इसे "सालाना फीस" कहा है, जिससे भ्रम पैदा हुआ। USCIS की ताजा गाइडलाइंस (20 सितंबर 2025) के मुताबिक, यह एकमुश्त फीस है, जो वीज़ा की पूरी अवधि (आमतौर पर 3 साल) के लिए है। नियम तुरंत लागू हो गया है, लेकिन कंपनियों को अभी इम्प्लिमेंटेशन की पूरी क्लैरिटी नहीं मिली है। कुछ कंपनियाँ, जैसे Amazon और Microsoft, ने अपने कर्मचारियों को जल्दी US लौटने को कहा है, ताकि मौजूदा वीज़ा प्रभावित न हों।
त्वरित तथ्य
बिंदु | विवरण |
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नया दाखिला | H-1B पर अब $100,000 सालाना फीस |
प्रभावित | नए आवेदक; पुराने धारक असंक्रमित |
मुख्य कारण | स्थानीय नौकरियों की सुरक्षा और राजस्व जनरेशन |
भारत की IT कंपनियों पर असर
भारत की बड़ी IT कंपनियाँ जैसे - TCS, Infosys, Wipro, HCL - अमेरिका में हजारों लोग भेजती हैं। हर साल ये कंपनियाँ हजारों H-1B वीज़ा के लिए अप्लाई करती हैं। अब हर वीज़ा पर 1 लाख डॉलर फीस देनी होगी। इससे कंपनियों का खर्च बहुत बढ़ जाएगा।
हो सकता है कंपनियाँ अब कम लोगों को भेजें। कुछ कंपनियाँ अमेरिका की बजाय भारत या अन्य देशों में ही काम करवाना शुरू कर दें। इससे अमेरिका में ऑनसाइट प्रोजेक्ट्स कम हो सकते हैं। कंपनियों को अपने बिजनेस मॉडल में बदलाव करना पड़ेगा।
भारतीय प्रोफेशनल्स पर असर
भारतीय छात्रों और युवाओं का सपना अमेरिका जाकर काम करने का रहा है। खासकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स और स्टूडेंट्स सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। अब अमेरिका जाना पहले से कहीं ज्यादा महंगा और मुश्किल होगा।
जो लोग छोटे या मिड-लेवल कंपनियों से अप्लाई करेंगे, उनके लिए चांस कम होंगे। सिर्फ वही लोग जा पाएंगे जिनके पास टॉप लेवल स्किल्स हों या जिनकी कंपनी फीस देने को तैयार हो।
अमेरिकी सरकार ने यह कदम क्यों उठाया?
- अमेरिकियों की नौकरी बचाने के लिए। वहाँ कहा जाता है कि विदेशी लोग कम सैलरी पर काम लेकर लोकल वर्कर्स की नौकरी छीन लेते हैं।
- कंपनियों को कंट्रोल करने के लिए। बड़ी कंपनियाँ बहुत सारे वीज़ा फाइल करती थीं। भारी फीस से केवल उन कंपनियों के आवेदन आएंगे जिनको सच में जरूरत है।
- रेवेन्यू बढ़ाने के लिए। 100,000 डॉलर फीस से अमेरिकी सरकार को बड़ा राजस्व मिलेगा।
- पॉलिटिक्स। चुनाव और घरेलू राजनीति में इमिग्रेशन एक संवेदनशील मुद्दा रहता है।
भारत के लिए चुनौतियाँ
भारत की IT इंडस्ट्री अमेरिका पर बहुत निर्भर है। अगर वहां जाना मुश्किल हुआ तो बिजनेस पर असर पड़ेगा। नए स्टूडेंट्स और युवाओं का सपना टूट सकता है। भारत से होने वाले IT एक्सपोर्ट पर भी दबाव आएगा।
भारत सरकार और इंडस्ट्री की प्रतिक्रिया
इंडस्ट्री बॉडी NASSCOM ने इस पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि इससे भारतीय कंपनियों के ऑपरेशन प्रभावित होंगे। कई कंपनियों ने कहा है कि वे स्थिति का आकलन कर रहे हैं।
भविष्य का रास्ता
कुछ कंपनियाँ अब रिमोट वर्क पर ज्यादा ध्यान देंगी। यानि टीम इंडिया से काम करवाना बढ़ेगा। कुछ कंपनियाँ कनाडा, यूरोप या एशिया में नए सेंटर खोल सकती हैं।
भारतीय युवाओं को भी अब सिर्फ अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। नई स्किल्स सीखना जरूरी होगा। AI, डेटा साइंस और साइबर सिक्योरिटी जैसी फील्ड्स में अवसर बढ़ रहे हैं।
भारतीय छात्रों के लिए सुझाव
- सिर्फ H-1B वीज़ा पर भरोसा न करें। दूसरे देश भी देखें।
- कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप में भी अच्छे अवसर हैं।
- अमेरिका जाने से पहले कंपनी की स्थिति और पैकेज समझ लें।
- AI, डेटा साइंस, क्लाउड और साइबर सिक्योरिटी जैसी स्किल्स सीखें।
- रिमोट जॉब्स के लिए तैयारी रखें।
निष्कर्ष
H-1B वीज़ा का नया नियम भारत के लिए बड़ा झटका है। भारतीय कंपनियों का खर्च बढ़ेगा और छात्रों को कठिनाई होगी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि रास्ता बंद हो गया है। भारतीय टैलेंट की डिमांड आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा है। बस अब रास्ता थोड़ा मुश्किल हो गया है। कोर्ट में चैलेंज या भविष्य में नियमों में बदलाव की संभावना बनी हुई है।
यदि आप प्रभावित हैं
अगर आप H-1B पर काम करने का सोच रहे थे, तो अपनी योजना दोबारा देखें। अपनी कंपनी से बात करें। वैकल्पिक देशों और रिमोट जॉब विकल्पों को देखें।