लेकिन कभी-कभी यही इम्यून सिस्टम खुद हमारे शरीर पर हमला कर देती है। इसे ऑटोइम्यून डिजीज कहा जाता है। वैज्ञानिक कई सालों से समझने की कोशिश कर रहे थे कि ऐसा क्यों होता है और इसे कैसे रोका जा सकता है। 2025 के मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार ने इसी सवाल का जवाब देने वाले तीन वैज्ञानिकों को सम्मानित किया है। उनकी खोज ने हमारी इम्यून सिस्टम की समझ को एक नया रास्ता दिया है।
2025 का फिजियोलॉजी या मेडिसिन का Nobel Prize तीन वैज्ञानिकों को दिया गया है।
इन तीनों को यह पुरस्कार “Peripheral Immune Tolerance” को समझने और “Regulatory T Cells” की खोज के लिए दिया गया है। उन्होंने यह दिखाया कि हमारी इम्यून सिस्टम कैसे अपने और पराए में फर्क करती है और खुद पर हमला करने से कैसे बचती है।
- विषय: Regulatory T Cells और Peripheral Immune Tolerance
- मुख्य जीन: FOXP3
- असर: ऑटोइम्यून रोग, ट्रांसप्लांट, कैंसर उपचार
- इम्यून सिस्टम का संतुलन कैसे बनता है, यह समझ
- नई दवाओं और थेरेपी की दिशा
- लंबे समय की स्वास्थ्य रणनीति
Mary अमेरिका की एक प्रमुख इम्यूनोलॉजिस्ट हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बुनियादी इम्यून रिसर्च से की। उन्होंने FOXP3 नामक एक खास जीन की खोज में अहम भूमिका निभाई। यह जीन हमारे शरीर में उन कोशिकाओं को नियंत्रित करता है जो इम्यून सिस्टम को संतुलित रखती हैं।
Ramsdell ने Brunkow के साथ मिलकर FOXP3 की भूमिका को और गहराई से समझा। उन्होंने दिखाया कि अगर यह जीन खराब हो जाए तो शरीर खुद के ऊतकों को दुश्मन मानने लगता है। यह ऑटोइम्यून बीमारियों का मुख्य कारण बनता है।
Sakaguchi जापान के वैज्ञानिक हैं जिन्होंने सबसे पहले “Regulatory T Cells” (Tregs) की पहचान की। उन्होंने बताया कि ये कोशिकाएं हमारी इम्यून सिस्टम को शांत रखने और अपने ऊतकों को नुकसान से बचाने में मुख्य भूमिका निभाती हैं।
हमारी इम्यून सिस्टम कई तरह की कोशिकाओं से बनी होती है। इनमें से एक खास प्रकार है Regulatory T Cells। इन्हें संक्षेप में Tregs कहा जाता है।
- Tregs इम्यून सिस्टम के “ब्रेक” की तरह काम करती हैं।
- खतरा होने पर इम्यून सिस्टम एक्सेलेरेटर दबाती है, खतरा खत्म होने पर ब्रेक जरूरी है।
- Tregs इम्यून सिस्टम को शांत करती हैं और शरीर की सामान्य कोशिकाओं पर हमला रोकती हैं।
अगर ये कोशिकाएं ठीक से काम न करें, तो शरीर खुद पर हमला करने लगता है। इससे लुपस, रुमेटॉयड अर्थराइटिस, टाइप-1 डायबिटीज़ जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
FOXP3 एक खास जीन है जो Regulatory T Cells को सही तरह से काम करने में मदद करता है।
- यह जीन उन प्रोटीनों को नियंत्रित करता है जो इम्यून सिस्टम की गतिविधियों को संतुलित रखते हैं।
- अगर इस जीन में गड़बड़ी हो जाए, तो Tregs बन नहीं पातीं या सही से काम नहीं करतीं।
- ऐसे में शरीर खुद के ऊतकों को भी दुश्मन समझकर हमला करने लगता है।
Brunkow और Ramsdell की रिसर्च ने यह साबित किया कि FOXP3 के बिना इम्यून सिस्टम का संतुलन बिगड़ जाता है।
हमारा शरीर “अपने” और “बाहरी” को पहचानने में बहुत स्मार्ट है। जन्म से ही इम्यून सिस्टम को यह सिखाया जाता है कि कौन सी कोशिकाएं हमारी हैं और कौन सी बाहर से आई हैं। लेकिन जीवन के दौरान कुछ नई कोशिकाएं या प्रोटीन भी बनते हैं। उन्हें पहचानने और उन पर हमला न करने की प्रक्रिया को Peripheral Immune Tolerance कहा जाता है।
- यह एक तरह का “शांतिपूर्ण सहअस्तित्व” है।
- Regulatory T Cells इसी प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती हैं।
- वे नई बनी कोशिकाओं को भी “अपना” मानने में मदद करती हैं।
अगर यह प्रक्रिया बिगड़ जाए, तो शरीर नई कोशिकाओं को “अजनबी” मान लेता है और उन पर हमला शुरू कर देता है।
ऑटोइम्यून बीमारियाँ तब होती हैं जब इम्यून सिस्टम खुद के ऊतकों को ही दुश्मन समझ लेता है। इन बीमारियों का इलाज मुश्किल होता है क्योंकि यह पूरी तरह इम्यून सिस्टम से जुड़ी होती हैं। इस खोज ने इनके इलाज के नए रास्ते खोले हैं।
- अब डॉक्टर Tregs को बढ़ाने या एक्टिव करने की कोशिश कर सकते हैं।
- FOXP3 जीन को टारगेट करके नई दवाएं बनाई जा सकती हैं।
- लुपस, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, टाइप-1 डायबिटीज जैसी बीमारियों में फायदा संभव है।
अंग प्रत्यारोपण में सबसे बड़ी समस्या होती है “रिजेक्शन”। यानी शरीर नया अंग स्वीकार नहीं करता और उसे नष्ट करने की कोशिश करता है। Tregs और Peripheral Tolerance की समझ इस समस्या का हल दे सकती है।
- ऐसी दवाएं विकसित की जा सकती हैं जो Tregs को एक्टिव करें।
- शरीर नए अंग को “अपना” मान सकता है और रिजेक्शन का खतरा कम हो सकता है।
कैंसर के इलाज में भी यह खोज भूमिका निभा सकती है। कैंसर कोशिकाएं अक्सर इम्यून सिस्टम से छिप जाती हैं। लेकिन कभी-कभी Tregs उन्हें पहचानने से भी रोकती हैं।
- अगर Tregs को नियंत्रित किया जाए, तो इम्यून सिस्टम कैंसर कोशिकाओं पर बेहतर हमला कर सकता है।
- भविष्य में इस आधार पर और प्रभावी कैंसर इम्यूनोथेरेपी संभव है।
इस रिसर्च का असर आने वाले दशकों तक रहेगा। नई दवाओं और थैरेपी के विकास में इसका इस्तेमाल होगा। पर्सनलाइज़्ड मेडिसिन में यह अहम भूमिका निभाएगा। बच्चों में जन्मजात इम्यून समस्याओं का इलाज करना आसान होगा।
यह खोज सिर्फ बीमारियों के इलाज तक सीमित नहीं है। यह हमें यह भी सिखाती है कि शरीर खुद को संतुलित रखने के लिए कितनी जटिल प्रक्रिया अपनाता है।
2025 का नोबेल पुरस्कार सिर्फ तीन वैज्ञानिकों की जीत नहीं है। यह पूरी मानवता की जीत है। इन्होंने हमें सिखाया कि हमारी इम्यून सिस्टम कितनी समझदार है और कैसे खुद को नियंत्रित करती है। इनकी खोज के कारण भविष्य में लाखों लोगों की जिंदगी बेहतर हो सकती है।
इम्यून सिस्टम हमारे शरीर की सबसे बड़ी रक्षक है। लेकिन अगर यही रक्षक अपना संतुलन खो दे, तो वह खुद दुश्मन बन सकती है। Mary Brunkow, Fred Ramsdell और Shimon Sakaguchi की रिसर्च ने हमें यह सिखाया है कि इसे कैसे रोका जा सकता है। Regulatory T Cells और FOXP3 की समझ ने मेडिकल साइंस को नई दिशा दी है।
अब डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के पास ऑटोइम्यून बीमारियों, कैंसर और अंग प्रत्यारोपण जैसी चुनौतियों से निपटने के और प्रभावी तरीके होंगे। 2025 का नोबेल पुरस्कार न सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के भविष्य की आशा भी है।
बिंदु | विवरण |
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विजेता | Mary E. Brunkow, Fred Ramsdell, Shimon Sakaguchi |
विषय | Regulatory T Cells, Peripheral Immune Tolerance |
मुख्य जीन | FOXP3 |
स्वास्थ्य पर असर | ऑटोइम्यून रोग, ऑर्गन ट्रांसप्लांट, कैंसर इम्यूनोथेरेपी |
भविष्य | नई दवाएं, पर्सनलाइज़्ड मेडिसिन, बेहतर उपचार |