भारत में श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में चार बड़े श्रम कोड तैयार किए। इन्हीं में से सबसे महत्वपूर्ण है Code on Social Security 2020, जिसके अंतर्गत ग्रेच्युटी से जुड़े नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। यह बदलाव ऐसे समय में आया है जब देश का बड़ा कार्यबल असंगठित क्षेत्रों, ठेका प्रणाली, फिक्स्ड-टर्म रोजगार और प्लेटफॉर्म आधारित नौकरियों की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में यह समझना बहुत जरूरी है कि नया ग्रेच्युटी नियम 2025 में आपके लिए क्या बदलता है और इससे नौकरी, वेतन और भविष्य की बचत पर क्या प्रभाव पड़ता है।
ग्रेच्युटी वह राशि है जो किसी कर्मचारी को लंबे समय तक सेवा देने के बाद धन्यवाद-स्वरूप दी जाती है। यह नियोक्ता की तरफ से कर्मचारी के प्रति एक प्रकार का सम्मान होता है। पहले यह लाभ पाने के लिए पांच साल की लगातार सेवा अनिवार्य थी, लेकिन नए नियमों के लागू होने के बाद कई श्रमिक श्रेणियों को कम समय में भी यह लाभ मिल सकेगा। इससे बड़ी संख्या में कर्मचारी पहली बार ग्रेच्युटी जैसी सुरक्षा का लाभ उठा पाएंगे।
नया नियम क्यों आवश्यक था?
आज का रोजगार ढांचा तेजी से बदल रहा है। पहले कर्मचारी एक ही जगह कई साल काम करते थे, लेकिन अब अधिकांश नौकरियाँ फिक्स्ड-टर्म, कॉन्ट्रैक्ट, प्रोजेक्ट-बेस्ड या अल्पकालिक होती जा रही हैं। ऐसे में पाँच वर्ष की अनिवार्य शर्त बड़ी बाधा बनती थी, और लाखों कर्मचारियों को ग्रेच्युटी से वंचित रहना पड़ता था। सरकार ने इस वास्तविकता को समझते हुए नियमों में संशोधन किया और पात्रता को अधिक लचीला बनाया।
नई प्रणाली का उद्देश्य दो प्रमुख बातों पर केंद्रित है —
- श्रमिक सुरक्षा को बढ़ाना
- संगठित और गैर-संगठित क्षेत्रों के बीच अंतर को कम करना
इस परिवर्तन से यह सुनिश्चित होगा कि थोड़े समय के लिए भी काम करने वाला कर्मचारी भविष्य में एक सुरक्षित राशि प्राप्त कर सके। यह विशेष रूप से युवाओं, महिला कर्मचारियों, प्लेटफॉर्म वर्कर्स और स्वरोजगार आधारित श्रमिकों के लिए राहत देने वाला कदम माना जा रहा है।
ग्रेच्युटी का मूल अर्थ और दायरा
ग्रेच्युटी अधिनियम के अंतर्गत किसी कर्मचारी को दी जाने वाली राशि का निर्धारण उसकी सेवा अवधि और अंतिम वेतन संरचना के आधार पर किया जाता है। यह राशि कर्मचारी के रिटायरमेंट, नौकरी छोड़ने, नौकरी समाप्त होने, स्थायी अपंगता या मृत्यु की स्थिति में दी जाती है। यह कर्मचारी के भविष्य के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है और आय में स्थिरता प्रदान करती है।
पुरानी प्रणाली में ग्रेच्युटी को केवल स्थायी कर्मचारी ही प्राप्त कर सकते थे। अस्थायी मजदूर, ठेका कर्मचारी, कैजुअल स्टाफ और निश्चित अवधि (fixed-term) पर काम करने वाले कर्मचारी अधिकतर इस लाभ से वंचित थे। नए कोड्स में इस सीमित दायरे को समाप्त किया गया है और कई नई श्रेणियों को शामिल किया गया है।
नए श्रम कोड्स के बाद ग्रेच्युटी में सबसे बड़ा बदलाव
सबसे बड़ा बदलाव यह है कि निश्चित अवधि वाले कर्मचारियों (Fixed-Term Employees) के लिए ग्रेच्युटी पाने हेतु पाँच वर्ष की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। अब यदि कोई कर्मचारी केवल एक वर्ष की सेवा भी पूरी करता है तो वह ग्रेच्युटी पाने के योग्य माना जाएगा।
यह बदलाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उद्योगों में अब अधिकतर कर्मचारी परियोजना आधारित समय पर नियुक्त किए जाते हैं। इसलिये कर्मचारियों को सुरक्षा देने के लिए न्यूनतम सेवा अवधि कम करना आवश्यक था। सरकार की यही मंशा थी कि छोटी अवधि में भी काम करने वाले कर्मचारियों को सेवा-समाप्ति के समय एक उचित राशि मिलती रहे।
कौन-कौन कर्मचारी शामिल होंगे?
नया नियम लागू होने के बाद अब निम्न श्रेणियों के कर्मचारी भी ग्रेच्युटी के पात्र बन गए हैं:
- निश्चित अवधि वाले कर्मचारी
- कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी
- गिग व प्लेटफॉर्म आधारित श्रमिक
- मौसमी कर्मचारी (कुछ परिस्थितियों में)
- महिला कर्मचारी
- युवा व नए श्रमिक
- सेवा अवधि में बाधा आने वाले कर्मचारी (विशिष्ट परिस्थितियों में)
इस बदलाव का सीधा लाभ उन क्षेत्रों को मिलेगा जहां श्रमिक लगातार नौकरी बदलते रहते हैं, जैसे मैन्युफैक्चरिंग, ई-कॉमर्स, आईटी सेवाएँ, डिलीवरी प्लेटफॉर्म, निर्माण कार्य, सेल्स और रिटेल।
नया नियम कर्मचारी को बेहतर सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन नियोक्ता के लिए वित्तीय प्रबंधन अधिक व्यवस्थित करने की आवश्यकता भी बढ़ाता है।
इसी कारण कई कंपनियों ने वेतन संरचना, बोनस मॉडल और भत्तों को पुनर्गठित करना शुरू कर दिया है, ताकि वे नए कानूनी दायित्वों को समय पर पूरा कर सकें।
नए श्रम कोड्स में ग्रेच्युटी की गणना कैसे बदली?
नए श्रम कोड्स के लागू होने के बाद ग्रेच्युटी की गणना में सबसे बड़ा बदलाव “वेतन की परिभाषा” में आया है। पहले वेतन में कई भत्ते शामिल नहीं होते थे, जिससे कई कर्मचारियों को कम ग्रेच्युटी मिलती थी। अब नए नियमों के अनुसार वेतन का 50% हिस्सा “मूल वेतन + डीए” के रूप में माना जाएगा। इससे ग्रेच्युटी की गणना अधिक पारदर्शी हो गई है और कई कर्मचारियों को लाभ मिलेगा।
ग्रेच्युटी की गणना का आधार वही रहता है—
ग्रेच्युटी = (अंतिम वेतन × 15/26 × सेवा के वर्ष)
लेकिन अंतिम वेतन का दायरा बढ़ने से ग्रेच्युटी की राशि भी बढ़ सकती है।
उदाहरण समझें
मान लीजिए किसी कर्मचारी का कुल वेतन 40,000 रुपये है। पुराने नियमों में उसका मूल वेतन सिर्फ 16,000 माना जाता था। लेकिन नए नियमों में कुल वेतन का कम से कम 50% मूल वेतन माना जाएगा— यानी 20,000 रुपये। इस तरह उसके लिए ग्रेच्युटी की गणना बढ़ जाती है, जिससे लाभ मिलता है।
| पैरामीटर | पहले | अब |
| मूल वेतन | 16,000 | 20,000 |
| सेवा अवधि | 5 वर्ष आवश्यक | 1 वर्ष में पात्र |
इस स्पष्ट बदलाव से कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा मजबूत होती है और भविष्य की वित्तीय योजना सरल होती है।
फिक्स्ड–टर्म कर्मचारियों के लिए बड़ा बदलाव
नई लेबर कोड में सबसे बड़ा लाभ फिक्स्ड–टर्म कर्मचारियों को मिला है। पहले ऐसे कर्मचारी ग्रेच्युटी से वंचित रहते थे क्योंकि उनकी सेवा अवधि अमूमन 5 वर्षों से कम होती थी। अब स्थिति बदल चुकी है।
- फिक्स्ड–टर्म कर्मचारी सिर्फ 1 वर्ष की सेवा के बाद ग्रेच्युटी के पात्र होंगे।
- उनके लिए स्थायी कर्मचारियों जैसी ही गणना की जाएगी।
- यदि सेवा अवधि एक वर्ष से कम भी हो परन्तु 240 दिनों के बराबर हो, तो भी कई मामलों में लाभ मिल सकता है (राज्य अधिसूचना के अनुसार)।
इस बदलाव से अस्थायी और प्रोजेक्ट आधारित नौकरियों में काम करने वाले लाखों कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा मिली है।
कर्मचारी और नियोक्ता दोनों पर प्रभाव
नए नियमों का प्रभाव दो तरह से दिख रहा है — कर्मचारियों को लाभ और नियोक्ताओं पर अतिरिक्त दायित्व। कर्मचारियों को जल्दी पात्रता मिलती है और उच्च वेतन–आधार से उनकी ग्रेच्युटी राशि बढ़ती है। वहीं नियोक्ताओं को ग्रेच्युटी फंड में अधिक राशि जमा करनी पड़ सकती है।
कर्मचारियों को लाभ
- नौकरी बदलने या कंपनी बंद होने पर भी सुरक्षा मिलती है।
- कम अवधि की सेवा पर भी ग्रेच्युटी का भरोसा मिलता है।
- नया वेतन–मानदंड कर्मचारियों के पक्ष में जाता है।
नियोक्ताओं की चुनौतियाँ
- ग्रेच्युटी फंड की योजना को पुनः व्यवस्थित करना।
- 1 वर्ष में पात्रता मिलने से अतिरिक्त वित्तीय व्यवस्था करनी।
- नया वेतन ढांचा लागू करना।
कई उद्योग–विशेषज्ञ मानते हैं कि यह नया ढांचा कर्मचारियों की सुरक्षा बढ़ाता है और भारत के श्रम–तंत्र को वैश्विक मानकों के करीब ले जाता है।
सरकारी अधिसूचना और कानूनी ढांचा
ग्रेच्युटी नियमों से संबंधित बदलाव “Code on Social Security, 2020” के अंतर्गत समाहित हैं। यह अधिनियम कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा से जुड़े सभी पुराने कानूनों को एक ढांचे में लाता है। संबंधित आधिकारिक दस्तावेज यहां उपलब्ध हैं: labour.gov.in (Government of India – Ministry of Labour & Employment)
राज्यों द्वारा अधिसूचनाएँ जारी की जाएँगी, इसलिए राज्य–स्तर पर कुछ प्रक्रियाएँ बदल सकती हैं। यह कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के लिए जानना जरूरी है।
नए नियमों से कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के लिए क्या बदल जाएगा?
नए श्रम कोड्स लागू होने के बाद ग्रेच्युटी व्यवस्था में वह परिवर्तन आया है जिसकी जरूरत वर्षों से महसूस की जा रही थी। पहले ग्रेच्युटी का लाभ केवल लंबे समय तक काम करने वाले कर्मचारियों को मिलता था, लेकिन अब यह दायरा काफी बढ़ गया है। छोटे संस्थानों, तेज रोजगार बदलाव वाले क्षेत्रों और नई नियुक्तियों के लिए यह बदलाव काफी उपयोगी साबित हो सकता है। यहाँ हम विस्तार से समझते हैं कि नए कोड्स से कामकाजी दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
सबसे बड़ा असर यह है कि नौकरी बदलने वाले, अस्थायी अनुबंध वाले, या निश्चित अवधि (Fixed Term) पर काम करने वाले लोग अब नौकरी की शुरुआत से ही बेहतर सुरक्षा में होंगे। नए कानून स्पष्ट करते हैं कि यदि कोई व्यक्ति एक वर्ष की निरंतर सेवा पूरी करता है, तो उसे ग्रेच्युटी का हक मिलेगा, चाहे उसकी नियुक्ति स्थायी हो या निश्चित अवधि की। इससे नौकरी की प्रकृति चाहे जैसी हो, कर्मचारी की मेहनत का मूल्य समान रूप से सुरक्षित हो जाता है।
नियोक्ताओं के लिए नीतिगत बदलाव
नियोक्ताओं के लिए यह बदलाव आसान नहीं होगा। उन्हें अपनी मानव संसाधन नीति (HR Policy), वेतन संरचना, सेवा पुस्तिका और लाभ-संबंधी प्रावधानों को नए कोड्स के अनुसार अपडेट करना होगा। ईमानदारी से कहा जाए तो अधिकतर उद्योगों में यह बड़ा संरचनागत बदलाव है, क्योंकि पाँच वर्ष की सीमा को एक वर्ष तक घटाने से वित्तीय देनदारियाँ पहले की तुलना में बढ़ेंगी।
नियोक्ताओं को ध्यान रखना होगा कि नए नियम वेतन (Wage) की परिभाषा को भी बदलते हैं। कुल वेतन का कम से कम 50% बेसिक वेतन या DA के रूप में होना चाहिए। इससे कंपनियों द्वारा वेतन विभाजन में की जाती अनियमितताएँ काफी हद तक खत्म हो सकती हैं। यह बदलाव कर्मचारियों के लिए लाभकारी है, लेकिन कंपनियों के लिए अनुपालन लागत में वृद्धि करता है।
- ग्रेच्युटी देनदारी हर कर्मचारी के लिए पहले साल से शुरू होगी।
- वेतन संरचना को नए कानून के हिसाब से पुनर्गठित करना अनिवार्य है।
- कर्मचारियों को अधिक पारदर्शिता देनी होगी।
- कर्मचारी रिकॉर्ड और सेवा पुस्तिका को डिजिटल रूप से अपडेट रखना होगा।
ग्रेच्युटी भुगतान की प्रक्रिया अब कैसी होगी?
पहले ग्रेच्युटी आवेदन के लिए कर्मचारी को अंतिम कार्य दिवस के बाद नियोक्ता से संपर्क करना पड़ता था। कई बार संस्थान यह भुगतान समय पर नहीं कर पाते थे। नए नियमों में स्पष्ट कहा गया है कि नियोक्ता को कर्मचारी के सेवा-समाप्ति के 30 दिनों के भीतर ग्रेच्युटी राशि जारी करनी होगी। विलंब होने पर ब्याज देना होगा। इसका उद्देश्य कर्मचारी के अधिकारों को मजबूत करना और भुगतान प्रक्रिया को समयबद्ध बनाना है।
इसके अलावा, नए कोड्स में यह भी प्रावधान है कि कंपनी में डिजिटल रजिस्टर बनाना अनिवार्य होगा, जिसमें कर्मचारी की नियुक्ति, सेवा अवधि, वेतन संरचना और ग्रेच्युटी देनदारी का लेखा स्पष्ट हो। इससे विवाद और भ्रम की स्थितियाँ कम होंगी।
| पुराना प्रावधान | नया प्रावधान |
| ग्रेच्युटी के लिए 5 वर्ष सेवा अनिवार्य | 1 वर्ष सेवा पर भी अधिकार |
| Fixed Term कर्मचारी पात्र नहीं | FTE को भी समान अधिकार |
| वेतन परिभाषा सीमित | विस्तृत वेतन परिभाषा (50% न्यूनतम) |
| भुगतान समय सीमा अनिश्चित | 30 दिन में ग्रेच्युटी अनिवार्य |
कर्मचारी जागरूकता – सबसे जरूरी कदम
भारत में श्रमिकों को अक्सर अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती। खासतौर पर निजी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी वेतन कटौती, ग्रेच्युटी, छुट्टी बैलेंस और बोनस जैसे लाभों के बारे में अपडेट नहीं रहते। नए श्रम कोड्स तभी पूरी तरह सफल होंगे जब कर्मचारी जागरूक होंगे कि उन्हें किस कानून के तहत क्या अधिकार मिलता है।
नई व्यवस्था में सरकार ने कोशिश की है कि श्रमिकों को स्पष्ट, सरल और एकरूप कानून दिए जाएँ। लेकिन व्यवहार में यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि कर्मचारी अपने डेटा को जाँचते हैं या नहीं, नौकरी छोड़ते समय उचित दस्तावेज लेते हैं या नहीं, तथा कंपनी से सभी भुगतान की समय सीमा को लेकर जागरूक रहते हैं या नहीं।
यदि नियोक्ता ग्रेच्युटी भुगतान समय पर नहीं करते, तो कर्मचारी श्रम विभाग में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। नए कोड्स में शिकायत प्रक्रिया को सरल बनाया गया है।
निष्कर्ष
नए श्रम कोड्स भारत में रोजगार ढाँचे को आधुनिक बनाने की दिशा में बड़ा कदम हैं। ग्रेच्युटी नियमों में बदलाव ने कर्मचारियों के लिए सुरक्षा कवच मजबूत किया है और रोजगार के बदलते स्वरूप को ध्यान में रखा है। पहले जहाँ ग्रेच्युटी केवल लंबे समय तक सेवा करने वाले कर्मचारियों तक सीमित थी, वहीं अब अस्थायी और निश्चित अवधि वाले कर्मचारी भी इसका लाभ उठा सकेंगे। यह बदलाव श्रमिकों के भविष्य को अधिक सुरक्षित, सम्मानजनक और संतुलित बनाता है।

