बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण: चुनावी रणनीति और वोट बैंक का खेल

0 Divya Chauhan
बिहार की राजनीति और चुनावों में जातीय समीकरण का प्रभाव


बिहार की राजनीति हमेशा जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यहाँ का समाज कई जातियों में बँटा हुआ है और हर जाति का अपना वोट बैंक है। यही कारण है कि नेता और पार्टियाँ चुनाव से पहले जातीय गणित साधने में जुट जाते हैं।


बिहार का जातीय ढांचा


बिहार में बड़ी संख्या में यादव, मुसलमान, ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कुर्मी, कुशवाहा और दलित समाज रहते हैं। इसके अलावा अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और अल्पसंख्यक भी चुनावी नतीजों में बड़ा रोल निभाते हैं।


यही विविधता राजनीति में समीकरण बनाती और बिगाड़ती है।


इतिहास और जातीय राजनीति की शुरुआत


स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में बिहार की राजनीति पर सवर्ण जातियों का दबदबा था। ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत नेता सत्ता के केंद्र में थे।


1970 के दशक के बाद हालात बदलने लगे। जयप्रकाश नारायण आंदोलन ने पिछड़ी जातियों को राजनीति में आगे आने का रास्ता दिया। इसके बाद मंडल आयोग की सिफारिशों ने बिहार में सामाजिक बदलाव को और तेज कर दिया।


1990 में लालू प्रसाद यादव के उदय ने जातीय राजनीति को नया चेहरा दिया। उन्होंने मुसलमान और यादवों को जोड़कर "MY समीकरण" बनाया, जो लंबे समय तक बिहार की राजनीति पर हावी रहा।


जातीय समीकरण और बड़ी पार्टियाँ

राष्ट्रीय जनता दल (RJD)

RJD का आधार यादव और मुसलमान हैं। दोनों मिलकर लगभग 30% वोट बनाते हैं। यही समीकरण RJD को सत्ता में लाने और टिकाने में मदद करता रहा है।


जनता दल यूनाइटेड (JDU)

JDU का आधार कुर्मी और कुशवाहा जातियाँ हैं। नीतीश कुमार ने अपनी छवि "सभी जातियों के नेता" के रूप में बनाई। उन्होंने महिलाओं और दलित समाज में भी पकड़ मजबूत की।


भारतीय जनता पार्टी (BJP)

BJP का आधार सवर्ण जातियाँ हैं। ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत इसके मुख्य वोटर हैं। हाल के वर्षों में EBC और दलित समाज में भी BJP की पैठ बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने इसे और मजबूत किया।


कांग्रेस और वाम दल

कांग्रेस कभी सभी जातियों की पार्टी थी। लेकिन अब यह सीमित वोट बैंक तक रह गई है, खासकर मुसलमान और कुछ दलित समुदाय। वाम दल मजदूर और गरीब तबके पर केंद्रित रहते हैं।


बिहार चुनाव 2020 और जातीय असर


2020 के विधानसभा चुनाव ने दिखाया कि जातीय समीकरण अब भी हावी हैं।

RJD को यादव-मुसलमान वोट का लाभ मिला।

BJP को सवर्णों और EBC समाज का समर्थन मिला।

JDU को महिला और दलित वोट से फायदा हुआ।


हालांकि, बिहार चुनाव 2025 की तारीख नज़दीक आने के साथ ही यह सवाल और बड़ा हो गया है कि जातीय गणित किसके पक्ष में जाएगा।


जातीय समीकरण और गठबंधन


बिहार में कोई भी पार्टी अकेले सत्ता में नहीं आती। यहाँ गठबंधन की राजनीति चलती है।

  • महागठबंधन (RJD + JDU + कांग्रेस + वाम दल) → यादव, मुसलमान, कुर्मी, कुशवाहा और दलित वोट बैंक।
  • एनडीए (BJP + JDU + अन्य छोटे दल) → सवर्ण, EBC और कुछ दलित वोट।


2025 के चुनाव से पहले कौन-सा गठबंधन टिकेगा, यह देखने वाली बात होगी।


जातीय समीकरण और वोट बैंक का ब्योरा

  • यादव → 14% (RJD का मजबूत आधार)
  • मुसलमान → 16% (RJD और कांग्रेस का वोट बैंक)
  • कुर्मी → 4% (JDU का आधार)
  • कुशवाहा → 8% (JDU और छोटे दलों का प्रभाव)
  • सवर्ण → 10-12% (BJP का आधार)
  • दलित → 20% (निर्णायक वोट)
  • EBC → 25% (हर पार्टी को आकर्षित करने वाला वर्ग)


यही आंकड़े तय करते हैं कि चुनाव में किसका पलड़ा भारी होगा।


जातीय राजनीति बनाम विकास

युवाओं का एक बड़ा वर्ग मानता है कि बिहार को जातीय राजनीति से ऊपर उठकर विकास और रोजगार की राजनीति करनी चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि चुनाव आते ही जातीय समीकरण सब पर भारी पड़ जाते हैं।


बिहार चुनाव 2025 और जातीय राजनीति


2025 का विधानसभा चुनाव भी इसी जातीय गणित पर टिकेगा।

  • RJD यादव-मुस्लिम वोट को एकजुट रखने की कोशिश करेगी।
  • JDU नीतीश कुमार की छवि और महिला वोट पर दांव लगाएगी।
  • BJP सवर्ण और EBC वर्ग को साधेगी।
  • छोटे दल जातीय आधार पर महत्वपूर्ण सीटों पर असर डालेंगे।

बिहार चुनाव 2025 के संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर भी साफ है कि सभी पार्टियाँ जातीय संतुलन साधने की रणनीति बना रही हैं।


बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों से अलग नहीं हो सकती। यह राज्य की सामाजिक हकीकत है। हाँ, धीरे-धीरे विकास और रोजगार जैसे मुद्दे भी महत्व पा रहे हैं। लेकिन जब तक जातीय पहचान समाज में गहरी है, तब तक राजनीति में इसका असर हमेशा रहेगा।



बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण – FAQs


1. बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण क्यों महत्वपूर्ण हैं?


बिहार में समाज जातियों में बँटा हुआ है। हर जाति का अलग वोट बैंक है। इसी कारण जातीय समीकरण चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं।


2. RJD का सबसे मजबूत जातीय वोट बैंक कौन सा है?


RJD का सबसे मजबूत आधार यादव और मुसलमान हैं। यही "MY समीकरण" कहलाता है।


3. JDU किन जातियों पर सबसे ज्यादा निर्भर है?


JDU का मुख्य आधार कुर्मी और कुशवाहा जातियाँ हैं। साथ ही नीतीश कुमार ने दलित और महिलाओं में भी अपनी पकड़ बनाई है।


4. बिहार में BJP का जातीय आधार कौन है?


BJP का पारंपरिक आधार सवर्ण जातियाँ यानी ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत हैं। इसके अलावा OBC और दलित वर्ग में भी उसने पैठ बनाई है।


5. क्या सिर्फ जातीय समीकरण से बिहार में चुनाव जीते जा सकते हैं?


नहीं, जाति का महत्व है लेकिन विकास, रोजगार और नेतृत्व की छवि भी चुनाव जीतने में अहम भूमिका निभाते हैं।


6. 2025 बिहार चुनाव में जातीय समीकरण का क्या असर होगा?


2025 में भी जातीय गणित अहम रहेगा। RJD यादव-मुस्लिम वोट साधेगी, JDU सभी जातियों को जोड़ने की कोशिश करेगी और BJP सवर्ण+युवा वर्ग पर दांव लगाएगी।


7. बिहार की सबसे बड़ी जातियाँ कौन सी हैं?


बिहार में यादव (14%), मुसलमान (16%), दलित (20%), सवर्ण (10-12%) और अन्य OBC जातियाँ बड़ी संख्या में हैं।


8. क्या बिहार की युवा पीढ़ी जाति से ऊपर उठ रही है?


हाँ, युवा रोजगार और विकास को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। लेकिन चुनाव आते ही जाति का असर अब भी बना रहता है।


9. महागठबंधन में जातीय समीकरण कैसे काम करता है?


महागठबंधन (RJD + JDU + कांग्रेस + वाम दल) यादव, मुसलमान, कुर्मी, कुशवाहा और दलित वोटरों को साथ लाने की रणनीति अपनाता है।


10. क्या बिहार की राजनीति में भविष्य में जातीय राजनीति कम होगी?


धीरे-धीरे विकास और रोजगार पर ध्यान बढ़ेगा, लेकिन जातीय समीकरण पूरी तरह खत्म होने की संभावना अभी नहीं है।

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