भारत में डॉग बाइट और रेबीज का कहर: आंकड़े, मौतें और बचाव के उपाय

0 Divya Chauhan
बच्चे को कुत्ते के काटने की घटना


भारत में पिछले कुछ सालों से कुत्तों के काटने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। खासकर शहरी इलाकों और गांवों में आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसका सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है।


कुत्ते के काटने से सबसे बड़ा खतरा रेबीज का होता है। यह एक घातक बीमारी है, जो अक्सर समय पर इलाज न मिलने से मौत का कारण बनती है।


कुत्तों के काटने से बढ़ते मामले और रिकॉर्ड


स्वास्थ्य मंत्रालय और अलग-अलग राज्यों की रिपोर्ट बताती हैं कि हर साल लाखों लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं। इनमें बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है।


हाल ही के आंकड़े बताते हैं:

आयु वर्ग (Age Group) पुरुष (%) महिला (%) बच्चे (%) मौतें (अनुमानित)
0-14 वर्ष 28% 22% 50% 35%
15-40 वर्ष 40% 25% - 45%
40 वर्ष से ऊपर 18% 12% - 20%


इन आंकड़ों से साफ है कि छोटे बच्चे और युवा पुरुष सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं।



क्यों बढ़ रही है समस्या?


  • शहरों और गांवों में आवारा कुत्तों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
  • कचरे का सही प्रबंधन न होने से कुत्ते झुंड में इकट्ठा हो रहे हैं।
  • टीकाकरण (Vaccination) की कमी है।
  • कई लोग कुत्ते के काटने को हल्के में लेते हैं और इलाज नहीं करवाते।


रेबीज क्या है?


  • रेबीज एक वायरल बीमारी है। यह दिमाग और नसों पर हमला करती है।
  • शुरुआती लक्षणों में बुखार, दर्द और घाव वाली जगह पर जलन होती है।
  • बाद में डर लगना, पानी पीने में कठिनाई और दौरे आने लगते हैं।
  • इलाज न मिलने पर मरीज की मौत हो जाती है।


पुरुष, महिलाएं और बच्चे – किस पर ज्यादा असर?


  • बच्चे: खेलते समय या गलियों में सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं।
  • पुरुष: बाहर ज्यादा निकलने और कामकाज की वजह से घटनाएं ज्यादा होती हैं।
  • महिलाएं और बुजुर्ग: संख्या कम है, लेकिन इलाज न मिलने से खतरा ज्यादा बढ़ जाता है।


कुत्ते के काटने के हाल के मामले


  • उत्तर प्रदेश में इस साल 15 से ज्यादा मौतें दर्ज हुईं।
  • केरल और झारखंड में बच्चों पर हमले के मामले सामने आए।
  • दिल्ली, मुंबई और पटना जैसे बड़े शहरों में हर महीने हजारों लोग डॉग बाइट से अस्पताल पहुंच रहे हैं।


बचाव के उपाय


  • कुत्ते के काटने पर तुरंत साबुन और पानी से घाव धोएं।
  • बिना देर किए नजदीकी अस्पताल जाकर एंटी-रेबीज वैक्सीन लगवाएं।
  • घाव पर घरेलू इलाज या तेल-हल्दी लगाने से बचें।
  • आवारा कुत्तों से बच्चों को दूर रखें।
  • सरकार और नगर निगम को कुत्तों के स्टरलाइजेशन और वैक्सिनेशन पर ध्यान देना चाहिए।


सरकार की भूमिका


कई राज्यों ने आवारा कुत्तों की समस्या पर काम शुरू किया है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पर्याप्त नहीं है।

  • हर मोहल्ले में कुत्तों का वैक्सिनेशन होना चाहिए।
  • अस्पतालों में मुफ्त दवा और वैक्सीन हमेशा उपलब्ध रहनी चाहिए।
  • जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को सही जानकारी देनी होगी।


कुत्तों का काटना अब एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गया है। अगर समय पर कदम नहीं उठाए गए, तो रेबीज जैसी घातक बीमारी और मौतों का खतरा और बढ़ जाएगा।


साफ है कि इसमें सरकार, समाज और आम जनता — तीनों की भूमिका अहम है। लोगों को चाहिए कि वे सतर्क रहें और बचाव के तरीके अपनाएं।


❓ अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)


प्रश्न 1: कुत्ते के काटने पर सबसे पहले क्या करना चाहिए?

👉 तुरंत घाव को साबुन और साफ पानी से धोएं। फिर बिना देर किए अस्पताल जाकर एंटी-रेबीज वैक्सीन लगवाएं।


प्रश्न 2: क्या हर कुत्ते के काटने से रेबीज होता है?

👉 नहीं, हर बार नहीं। लेकिन अगर कुत्ता आवारा है या टीका नहीं लगा है, तो खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। इसलिए इलाज जरूरी है।


प्रश्न 3: रेबीज के लक्षण कब दिखाई देते हैं?

👉 आमतौर पर 1 से 3 महीने में लक्षण दिखते हैं। लेकिन कुछ मामलों में यह हफ्तों या दिनों में भी शुरू हो सकता है।


प्रश्न 4: बच्चों में रेबीज का खतरा ज्यादा क्यों है?

👉 बच्चे अक्सर गलियों में खेलते हैं और कुत्तों को छेड़ते हैं। छोटे होने के कारण उनका शरीर वायरस के असर को जल्दी झेलता है।


प्रश्न 5: रेबीज से बचाव कैसे किया जा सकता है?

👉 कुत्तों का टीकाकरण जरूरी है। बच्चों को आवारा कुत्तों से दूर रखें। और काटने की स्थिति में तुरंत इलाज करवाएं।


प्रश्न 6: क्या रेबीज का इलाज संभव है?

👉 अगर समय पर वैक्सीन लग जाए तो बीमारी रोकी जा सकती है। लेकिन लक्षण शुरू होने के बाद इसका इलाज संभव नहीं है।


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