दोस्तों, आज का जमाना कूटनीति और रणनीति का है। हाल के दिनों में भारत, रूस और चीन के बीच जो गतिविधियां देखने को मिल रही हैं, वे किसी साधारण मुलाकात से कहीं ज्यादा हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल रूस में व्यस्त हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन यात्रा के लिए तैयार हैं, और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आने की योजना बना रहे हैं। यह सब टैरिफ युद्ध के बीच हो रहा है, जो दुनिया की आर्थिक और राजनीतिक तस्वीर को बदल सकता है। आइए, इस नए शक्ति संतुलन को समझते हैं, जो भारत के इर्द-गिर्द बन रहा है।
अजित डोभाल की रूस यात्रा किसी साधारण दौरे से अलग है। वे वहां रूस के शीर्ष नेताओं से मिल रहे हैं, जिसमें राष्ट्रपति पुतिन भी शामिल हो सकते हैं। इस मुलाकात का मकसद भारत-रूस की पुरानी दोस्ती को और मजबूत करना है। पिछले कुछ समय से अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर दबाव बनाया और 50% टैरिफ लगाने की बात कही। लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि वह अपने हितों से समझौता नहीं करेगा। डोभाल की यह यात्रा उसी रणनीति का हिस्सा है। रूस से सस्ता तेल और रक्षा सौदे जैसे मुद्दे इस मुलाकात में अहम होंगे। यह भारत की आत्मनिर्भरता और स्वतंत्र नीति का संकेत है।
मोदी चीन के लिए तैयार: नई शुरुआत की उम्मीद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के आखिर में चीन जा रहे हैं। यह उनकी 2020 के गलवान संघर्ष के बाद पहली चीन यात्रा होगी। 31 अगस्त से 1 सितंबर तक होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में उनकी मौजूदगी कई मायनों में खास है। भारत और चीन के बीच पिछले कुछ सालों में सीमा विवाद ने रिश्तों को तनावपूर्ण बनाया था, लेकिन अब दोनों देश बातचीत के जरिए रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी की यह यात्रा न केवल आर्थिक सहयोग बढ़ाएगी, बल्कि अमेरिका के दबाव के खिलाफ एक संयुक्त रुख दिखाने का मौका भी देगी। यह कदम भारत की वैश्विक कूटनीति में नई दिशा तय कर सकता है।
पुतिन भारत आने वाले: पुरानी दोस्ती का विस्तार
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा इस साल के अंत में होने की संभावना है। यह यात्रा उस समय हो रही है, जब अमेरिका और रूस के रिश्ते तनावपूर्ण हैं। पुतिन की भारत यात्रा भारत-रussia की विशेष साझेदारी को और गहरा करेगी। दोनों देशों के बीच ऊर्जा, रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ रहा है। अमेरिका के टैरिफ हमले के बीच यह दौरा भारत के लिए एक मजबूत संदेश होगा कि वह अपने पारंपरिक मित्रों के साथ खड़ा है। पुतिन और मोदी की मुलाकात से नई परियोजनाओं की शुरुआत हो सकती है, जो भारत की अर्थव्यवस्था को बल देगी।
टैरिफ युद्ध और नया शक्ति संतुलन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लगाकर आर्थिक दबाव बनाया है। इसका कारण रूस से तेल खरीदना बताया जा रहा है। लेकिन यह दबाव भारत को कमजोर करने के बजाय उसे और सजग बना रहा है। भारत, रूस और चीन मिलकर एक नया शक्ति संतुलन बना रहे हैं। 1990 के दशक में शुरू हुआ RIC (रूस-भारत-चीन) समूह फिर से सक्रिय हो सकता है। ये तीनों देश बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के समर्थक हैं और अमेरिका की एकतरफा नीतियों का जवाब देना चाहते हैं। यह गठबंधन न केवल आर्थिक, बल्कि भू-राजनीतिक स्तर पर भी अहम होगा।
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भारत की भूमिका और भविष्य
भारत इस नए संतुलन में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। अपनी सैन्य शक्ति, आर्थिक विकास और कूटनीतिक समझ के दम पर वह दुनिया के सामने एक नई तस्वीर पेश कर रहा है। अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत ने रूस और चीन के साथ संबंध मजबूत किए हैं। यह रणनीति भारत को वैश्विक मंच पर और मजबूत करेगी। आने वाले समय में यह गठजोड़ नई तकनीक, व्यापार और सुरक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव ला सकता है।
डोभाल रूस में, मोदी चीन के लिए तैयार, और पुतिन भारत आने वाले हैं—यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है। टैरिफ युद्ध के बीच भारत ने अपनी आवाज बुलंद की है। यह नया शक्ति संतुलन भारत को आत्मनिर्भर और सम्मानजनक स्थिति में ला सकता है। आने वाले दिन इस गठबंधन की दिशा तय करेंगे, लेकिन एक बात साफ है—भारत अब किसी के दबाव में नहीं झुकेगा।
भारत के लिए यह समय केवल कूटनीतिक चालें चलने का नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को स्थायी बनाने का भी है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ मतभेदों के बावजूद भारत जिस संतुलित नीति पर चल रहा है, उसने उसे विश्व राजनीति में एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में स्थापित किया है। अब भारत केवल “उभरती हुई शक्ति” नहीं, बल्कि “निर्णायक शक्ति” के रूप में देखा जा रहा है, जो बड़े देशों के फैसलों को प्रभावित कर सकती है। चाहे बात ऊर्जा सुरक्षा की हो या रक्षा साझेदारी की, भारत ने यह साबित किया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए भी सहयोग और शांति की राह पर आगे बढ़ सकता है।
भविष्य की कूटनीति में भारत की भूमिका और भी अहम होने वाली है। रूस और चीन के साथ तालमेल बढ़ाकर भारत न केवल अमेरिकी दबाव को संतुलित कर सकता है, बल्कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण में भी अग्रणी भूमिका निभा सकता है। यह साझेदारी भारत को तकनीक, अंतरिक्ष, ऊर्जा और रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में नई ऊँचाइयों तक ले जाएगी। आने वाले वर्षों में जब वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था फिर से आकार लेगी, तब भारत न केवल उस बदलाव का हिस्सा होगा बल्कि उसे दिशा देने वाला देश भी बनेगा। यही नया भारत है – आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और वैश्विक शक्ति संतुलन का निर्णायक केंद्र।