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नई दिल्ली: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अगस्त 2025 के अंत में भारत की आधिकारिक यात्रा पर आने वाले हैं। यह दौरा ऐसे समय पर हो रहा है जब पूरी दुनिया में आर्थिक और राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। वैश्विक व्यवस्था में लगातार बदलाव आ रहे हैं और महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा भी तेज़ हो गई है। इसी माहौल में पुतिन का यह भारत दौरा भारत के लिए रणनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
अमेरिका-भारत व्यापार तनाव के बीच रूस की अहमियत बढ़ी
हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आने वाले कई उत्पादों पर 50% तक का टैरिफ लगा दिया है। इस फैसले ने भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों में तनाव पैदा कर दिया है। कृषि, वस्त्र, औद्योगिक मशीनरी और फार्मा जैसे कई क्षेत्रों में भारतीय निर्यात महंगा हो गया है। इससे अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की मांग घटने की आशंका है।
ऐसे समय में रूस भारत के लिए एक वैकल्पिक और भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभर रहा है। भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने हैं और कई बार मुश्किल हालात में भी यह रिश्ता मज़बूत बना रहा है। पुतिन का यह दौरा भारत के लिए नए आर्थिक रास्ते खोल सकता है और अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करने में मदद कर सकता है।
अजीत डोभाल की भूमिका: रणनीति के केंद्र में सुरक्षा और हित
इस यात्रा की तैयारी में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल की भूमिका बेहद अहम है। डोभाल रूस के साथ वार्ताओं के एजेंडे को तय करने और बातचीत को अंतिम रूप देने में सीधे तौर पर शामिल हैं। उनका मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होगा कि बातचीत में भारत के सुरक्षा, रक्षा और आर्थिक हितों को प्राथमिकता दी जाए।
भारत और रूस के संबंधों का सबसे मजबूत स्तंभ हमेशा से रक्षा क्षेत्र रहा है। दोनों देशों के बीच ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना, सुखोई-30 लड़ाकू विमानों के आधुनिकीकरण, और एस-400 मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी जैसे कई बड़े रक्षा समझौते पहले ही हो चुके हैं। उम्मीद है कि इस यात्रा में इन विषयों पर आगे की साझेदारी पर चर्चा होगी।
व्यापार और निवेश: स्थानीय मुद्रा में सौदे और नए अवसर
ट्रंप के टैरिफ फैसले से भारत के निर्यात को झटका लगा है। ऐसे में पुतिन की यात्रा के दौरान व्यापार और निवेश को लेकर कुछ बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से शामिल हो सकते हैं:
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स्थानीय मुद्रा में व्यापार: भारत और रूस के बीच रुपये और रूबल में व्यापार बढ़ाने पर समझौता हो सकता है। इससे डॉलर पर निर्भरता घटेगी और व्यापारिक जोखिम कम होंगे।
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ऊर्जा समझौते: रूस से तेल और गैस की दीर्घकालिक आपूर्ति के लिए नए अनुबंध हो सकते हैं।
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बुनियादी ढांचे में निवेश: रूसी कंपनियों को भारत के बुनियादी ढांचे और औद्योगिक परियोजनाओं में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
इन फैसलों से भारत को वैश्विक व्यापार में अधिक विविधता और स्थिरता मिलेगी।
ऊर्जा क्षेत्र: सस्ती आपूर्ति और नए करार
ऊर्जा क्षेत्र इस यात्रा का एक बड़ा फोकस रहेगा। रूस भारत के लिए सबसे सस्ता कच्चा तेल सप्लाई करने वाले देशों में शामिल है। बढ़ती वैश्विक तेल कीमतों के बीच यह भारत के लिए एक आर्थिक राहत साबित हो सकता है।
पुतिन की यात्रा के दौरान निम्नलिखित पर समझौते हो सकते हैं:
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दीर्घकालिक तेल और गैस अनुबंध: जिससे भारत को ऊर्जा आपूर्ति की गारंटी मिलेगी।
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परमाणु ऊर्जा सहयोग: रूस की तकनीक से भारत में नए परमाणु रिएक्टर बनाने पर चर्चा हो सकती है।
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अंतरिक्ष अनुसंधान: रूस भारत के गगनयान मिशन में पहले से तकनीकी सहायता दे रहा है। इस सहयोग को और आगे बढ़ाने पर भी बातचीत संभव है।
चुनौतियाँ भी कम नहीं: पश्चिमी दबाव और चीन फैक्टर
हालांकि इस यात्रा में कई अवसर हैं, लेकिन कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी सामने हैं। पश्चिमी देश, विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय संघ, भारत पर रूस से दूरी बनाने का दबाव डाल सकते हैं। इसका कारण यूक्रेन संघर्ष है, जिसमें रूस को पश्चिमी दुनिया का विरोध झेलना पड़ रहा है।
इसके अलावा, रूस और चीन के बढ़ते रणनीतिक रिश्ते भी भारत के लिए चिंता का विषय हैं। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण नई दिल्ली को हर कदम फूंक-फूंककर रखना होगा। भारत को संतुलन साधते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करना होगा।
भू-राजनीतिक दृष्टि से भारत-रूस साझेदारी क्यों जरूरी
भारत और रूस के संबंध सिर्फ रक्षा या ऊर्जा तक सीमित नहीं हैं। यह एक भू-राजनीतिक साझेदारी है जिसने कई दशकों तक वैश्विक मंच पर भारत के हितों की रक्षा की है। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के लिए कई बार समर्थन देता रहा है। इसके अलावा, दोनों देश ब्रिक्स (BRICS), शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और जी-20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी साथ काम कर रहे हैं।
पुतिन की यह यात्रा भारत को न केवल आर्थिक विकल्प देगी, बल्कि वैश्विक मंच पर भी उसकी स्थिति को मजबूत करेगी। अमेरिका और चीन जैसे दो ध्रुवों के बीच भारत के लिए रूस एक तीसरा भरोसेमंद स्तंभ बन सकता है।
भविष्य की दिशा: नई साझेदारी, नए अवसर
पुतिन के इस दौरे से भारत-रूस संबंधों के कई नए आयाम खुल सकते हैं। भारत ऊर्जा, रक्षा, अंतरिक्ष और व्यापार में रूस के साथ सहयोग बढ़ाकर अपने विकास को नई दिशा दे सकता है। साथ ही, डॉलर पर निर्भरता कम करके और वैकल्पिक बाजारों की तलाश करके भारत वैश्विक आर्थिक झटकों से खुद को सुरक्षित भी कर सकता है।
यह दौरा भारत को अमेरिका और पश्चिम के साथ संबंधों में भी संतुलन साधने में मदद करेगा। भारत "स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी" यानी रणनीतिक स्वतंत्रता की नीति पर चलते हुए सभी महाशक्तियों से अपने हितों के अनुसार संबंध बनाए रख सकता है।
निष्कर्ष: अगस्त की मुलाकात भारत के भविष्य को तय कर सकती है
कुल मिलाकर, अगस्त 2025 में होने वाला व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं है। यह भारत के लिए कई स्तरों पर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
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यह भारत को आर्थिक विकल्प देगा।
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रक्षा और ऊर्जा साझेदारी को मजबूत करेगा।
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और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की भूमिका को और अहम बनाएगा।
अजीत डोभाल की रणनीतिक तैयारी, ट्रंप के टैरिफ फैसले के बाद नए बाजारों की तलाश, और रूस के साथ गहरी साझेदारी – ये सभी बातें इस दौरे को और भी खास बनाती हैं।
अब नज़रें अगस्त के अंत पर हैं, जब नई दिल्ली और मॉस्को के बीच होने वाली मुलाकात तय करेगी कि आने वाले दशक में भारत की कूटनीतिक और आर्थिक दिशा क्या होगी।
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