बिहार की राजनीति में नया मोड़: तेज प्रताप यादव और उनकी नई पार्टी की शुरुआत
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2025 में बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के वरिष्ठ नेता और लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने अपनी नई राजनीतिक राह चुन ली है। लंबे समय तक पिता और पार्टी के साये में राजनीति करने वाले तेज प्रताप अब खुद को जनता का नेता बताने लगे हैं। उन्होंने साफ कहा है कि वे अब किसी दल या परिवार की राजनीति नहीं करेंगे, बल्कि सीधे जनता की आवाज़ बनकर काम करेंगे। उनके शब्दों में, “अब मेरी असली पार्टी जनता है और मैं जनता के लिए ही राजनीति करूंगा।”
राजद से निष्कासन और पारिवारिक दूरी
तेज प्रताप यादव को मई 2025 में राजद से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया था। पार्टी नेतृत्व का कहना था कि तेज प्रताप ने सोशल मीडिया पर कुछ निजी पोस्ट साझा किए थे, जो पार्टी की विचारधारा और अनुशासन के खिलाफ थे। हालांकि, तेज प्रताप ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि उन्हें साजिश के तहत बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ “अपने ही लोग” उनके खिलाफ काम कर रहे हैं।
इसके बाद यादव परिवार और पार्टी नेतृत्व के साथ उनकी दूरी और बढ़ती गई। तेज प्रताप ने खुलकर सोशल मीडिया पर लिखा कि वे अब किसी दबाव में नहीं आएंगे और सच्चाई के लिए संघर्ष करेंगे। उन्होंने कुछ रिश्तेदारों और पूर्व सहयोगियों को “जयचंद” तक कह दिया। यह बयान साफ संकेत था कि अब तेज प्रताप पारिवारिक राजनीति से हटकर स्वतंत्र राह अपनाने का मन बना चुके हैं।
"टीम तेज प्रताप यादव" और नई राजनीतिक पहचान
निष्कासन के कुछ ही हफ्तों बाद तेज प्रताप ने पटना में एक भव्य रोड शो आयोजित किया, जिसे उन्होंने “टीम तेज प्रताप यादव” नाम दिया। हजारों की भीड़ इस रोड शो में उमड़ी, जिसे देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि तेज प्रताप अभी भी जनता के बीच लोकप्रिय हैं।
इस दौरान उन्होंने ऐलान किया कि वे फिर से महुआ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। यह वही सीट है, जहां से वे पहले भी विधायक रह चुके हैं और जो उनका राजनीतिक गढ़ माना जाता है। इस रोड शो के बाद यह अटकलें तेज हो गईं कि वे या तो नई पार्टी बनाएंगे या किसी नए दल में शामिल होंगे। हालांकि, तेज प्रताप ने इन अटकलों पर विराम लगाते हुए कहा, “मेरी पार्टी जनता है। जनता जो कहेगी, वही मैं करूंगा।”
नए गठबंधन के साथ नई रणनीति
अगस्त 2025 में तेज प्रताप ने एक और बड़ा कदम उठाते हुए पांच छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर एक नया राजनीतिक गठबंधन बना लिया। इनमें विकास वंचित इंसान पार्टी, प्रगतिशील जनता पार्टी, भोजपुरिया जन मोर्चा, संयुक्त किसान विकास पार्टी और वाजिब अधिकार पार्टी जैसी पार्टियाँ शामिल हैं। भले ही इस गठबंधन का नाम अभी तय नहीं हुआ है, लेकिन तेज प्रताप का कहना है कि इसका मकसद बिहार के गरीबों, युवाओं, किसानों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह गठबंधन समाजवादी विचारधारा पर आधारित रहेगा और इसका मुख्य उद्देश्य सत्ता हासिल करना नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई लड़ना है। तेज प्रताप ने यह भी ऐलान किया कि वे किसी भी हाल में भाजपा या जेडीयू के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। उन्होंने राजद और कांग्रेस को भी इसमें शामिल होने का निमंत्रण दिया है, हालांकि अभी तक उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
भाई तेजस्वी से दूरी, लेकिन “व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं”
तेज प्रताप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी साफ कर दिया कि उनका अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव से अब कोई राजनीतिक संबंध नहीं है। दोनों भाइयों के बीच पिछले कुछ वर्षों से मतभेद चल रहे हैं, जो अब खुले आम सामने आ गए हैं। फिर भी उन्होंने कहा कि यह केवल राजनीतिक मतभेद हैं, व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने पिता लालू यादव का हमेशा सम्मान करते हैं, लेकिन अब वे खुद की राजनीतिक राह बनाएंगे।
राजनीतिक विशेषज्ञों की राय
तेज प्रताप यादव के इस नए कदम ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ इसे नई राजनीतिक शुरुआत मान रहे हैं, तो कुछ इसे मजबूरी में उठाया गया कदम बता रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि तेज प्रताप के पास करिश्मा और जनाधार तो है, लेकिन संगठनात्मक ताकत की कमी है। अगर वे अपने गठबंधन को मजबूत कर लेते हैं और छोटे-छोटे मुद्दों को बड़े पैमाने पर उठा पाते हैं, तो वे चुनावी समीकरणों को बदल सकते हैं।
साथ ही, तेज प्रताप के पास युवाओं और ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित करने का मौका है। उन्होंने हमेशा खुद को किसानों, मजदूरों और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधि बताया है। अगर वे इस छवि को मजबूत कर पाए, तो वे पारंपरिक दलों को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।
आगे की राह और संभावनाएं
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में तेज प्रताप यादव का गठबंधन कितना असरदार साबित होगा। क्या जनता उन्हें एक स्वतंत्र नेता के रूप में स्वीकार करेगी? क्या राजद और कांग्रेस उनके साथ हाथ मिलाएंगे, या वे अकेले ही मैदान में उतरेंगे? और सबसे अहम बात, क्या वे अपने पिता लालू यादव की राजनीतिक विरासत को एक नए अंदाज में आगे बढ़ा पाएंगे?
बिहार की राजनीति इस समय एक दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है। जहां एक ओर तेजस्वी यादव मुख्य विपक्षी चेहरा बने हुए हैं, वहीं तेज प्रताप अपने अलग रास्ते से राजनीति में नई कहानी लिखने की कोशिश कर रहे हैं। अगर उनका प्रयोग सफल रहता है, तो यह बिहार की राजनीति के समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है।
फिलहाल इतना तय है कि तेज प्रताप यादव अब “लालू के बेटे” की छवि से बाहर निकलकर खुद को एक स्वतंत्र और जनहितैषी नेता के रूप में स्थापित करने में जुटे हैं। आने वाले महीनों में उनकी रणनीति, गठबंधन की मजबूती और जनता का रुख तय करेगा कि उनका यह नया राजनीतिक सफर कितना लंबा और असरदार होगा।
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