भारत में दालों का इस्तेमाल हर घर में होता है। दालें भारतीय रसोई का अहम हिस्सा हैं और प्रोटीन का मुख्य स्रोत भी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत जितनी दालें खाता है, उतनी खुद नहीं उगा पाता? हर साल लाखों टन दालें विदेशों से मंगानी पड़ती हैं। यही कारण है कि सरकार ने अब एक बड़ा कदम उठाया है — Mission for Aatmanirbharta in Pulses, जिसे Dalhan Aatmanirbharta Mission भी कहा जाता है। यह मिशन भारत को दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सबसे बड़ा प्रयास है। इसका उद्देश्य है कि आने वाले वर्षों में भारत अपनी पूरी दाल खुद उगाए, आयात पर निर्भर न रहे और किसान की आमदनी बढ़े।
मिशन क्या है
Mission for Aatmanirbharta in Pulses एक छह साल की राष्ट्रीय योजना है। इसे केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 में शुरू किया है। इस योजना का लक्ष्य है कि वर्ष 2031 तक भारत पूरी तरह दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाए।
सरकार ने इसके लिए ₹11,440 करोड़ का बजट मंजूर किया है। यह राशि केंद्र और राज्य दोनों मिलकर खर्च करेंगे। योजना को कृषि मंत्रालय संचालित करेगा और इसका समन्वय राज्य सरकारों, कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs), और किसानों के संगठनों के साथ किया जाएगा। इस योजना का फोकस तीन मुख्य बातों पर है — उत्पादन बढ़ाना, किसानों की आय में सुधार करना, और दालों के आयात को कम करना।
भारत में दालों की स्थिति
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक देश है, लेकिन खपत भी इतनी ज़्यादा है कि हर साल लगभग 25 से 30 लाख टन दालें विदेशों से खरीदनी पड़ती हैं। सबसे ज़्यादा दालें अरहर (तुअर), मसूर, उड़द और चना के रूप में उपयोग होती हैं।
इनमें से अरहर और उड़द की दालें अक्सर कम उत्पादन के कारण म्यांमार, तंजानिया और ऑस्ट्रेलिया से आयात करनी पड़ती हैं। इससे विदेशी मुद्रा का नुकसान होता है और बाजार में कीमतें बढ़ जाती हैं। इसी चुनौती को खत्म करने के लिए यह मिशन शुरू किया गया है ताकि देश अपने किसानों पर ही निर्भर रहे, न कि आयात पर।
मिशन के उद्देश्य
यह योजना कई उद्देश्य पूरा करने की कोशिश करती है। प्रमुख उद्देश्य छोटे वाक्यों में नीचे दिए गए हैं:
- भारत में दालों की पैदावार बढ़ाना।
- किसानों को दाल उत्पादन के लिए प्रेरित करना।
- नई किस्में विकसित करना जो कीट और मौसम के प्रति सहनशील हों।
- सिंचाई, बीज और भंडारण की बेहतर व्यवस्था करना।
- किसानों को MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर दाल बेचने की सुविधा देना।
- प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित करना ताकि दालों का मूल्यवर्धन हो।
- दालों के निर्यात को बढ़ाना और आयात घटाना।
बजट और अवधि
इस मिशन की अवधि 2025 से 2031 तक रखी गई है। सरकार ने इसके लिए कुल ₹11,440 करोड़ का आवंटन किया है। हर साल विभिन्न राज्यों में दाल उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएँ बनाई जाएँगी। बजट का बड़ा हिस्सा बीज सुधार, प्रशिक्षण, और भंडारण संरचना पर खर्च किया जाएगा।
सरकार का लक्ष्य है कि अगले छह साल में भारत की कुल दाल उत्पादन क्षमता कम से कम 35 मिलियन टन तक पहुँच जाए।
किन दालों पर ध्यान दिया जाएगा
इस मिशन में कुछ प्रमुख दालों पर विशेष जोर रहेगा। वे हैं:
- अरहर (Toor / Tur) — दक्षिण और पश्चिम भारत की महत्वपूर्ण दाल।
- उड़द (Urad) — उत्तर व दक्षिण में उपयुक्त और लोकप्रिय।
- मसूर (Masoor) — उत्तर और मध्य भारत में उगाई जाने वाली दाल।
इन तीनों दालों का उत्पादन और क्षेत्र दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि घरेलू आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
कैसे लागू होगा यह मिशन
योजना को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। हर चरण में अलग लक्ष्य तय होंगे। मुख्य गतिविधियाँ नीचे दी गई हैं।
बीज सुधार और अनुसंधान
कृषि वैज्ञानिक नई किस्में विकसित करेंगे जो कम समय में अधिक उपज दें और कीटों तथा सूखे से सुरक्षित हों। किसान को प्रमाणित बीज सस्ते दाम पर उपलब्ध कराए जाएँगे। राज्य कृषि विश्वविद्यालय और रिसर्च संस्थान इस काम में अहम भूमिका निभाएंगे।
फसल क्षेत्र विस्तार
बैरन भूमि (fallow land) और दूसरी फसल की संभावित जमीनों पर दाल की खेती बढ़ाई जाएगी। धान या गेहूं के बाद दाल की फसल उगाने का रूटीन अपनाया जाएगा ताकि भूमि का बेहतर उपयोग हो सके।
प्रशिक्षण और तकनीक
कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) और अन्य संस्थाओं के जरिए किसानों को नई तकनीक, जल प्रबंधन और फसल विविधता के बारे में ट्रेनिंग दी जाएगी। किसान समूहों के माध्यम से सामूहिक खरीद और साझा संसाधन भी बढ़ाए जाएंगे।
भंडारण और प्रसंस्करण
रिपने के बाद फसल के खराब होने की समस्या को रोकने के लिए जिलों में मिनी साइलो, गोदाम और प्रसंस्करण इकाइयाँ लगाई जाएँगी। इससे पोस्ट-हार्वेस्ट नुकसान कम होंगे और किसान को बेहतर दाम मिलेंगे।
सरकारी खरीद (MSP)
सरकार ने घोषणा की है कि आगामी चार साल तक अरहर, उड़द और मसूर की 100% फसल MSP पर खरीदी जाएगी। NAFED और NCCF जैसी एजेंसियाँ इसमें मदद करेंगी। इस कदम से किसानों को बाजार जोखिम से सुरक्षा मिलेगी।
डिजिटल निगरानी
योजना की प्रगति एक डिजिटल डैशबोर्ड पर दर्ज की जाएगी। जिले-वार डेटा, बीज वितरण, प्रशिक्षण सत्र और खरीद रिपोर्ट जैसे सभी मेट्रिक्स सार्वजनिक किए जाएंगे ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
किसानों को मिलने वाले फायदे
- किसानों को उनकी फसल का पूरा या बेहतर मूल्य मिलेगा।
- सरकार बीज और तकनीकी सहायता मुफ्त या रियायती दर पर देगी।
- भंडारण से फसल लंबे समय तक सुरक्षित रहेगी और बिचौलियों पर निर्भरता घटेगी।
- किसानों के लिए नए रोजगार और गांवों में छोटे उद्योग खुलेंगे।
- महिला किसानों की भागीदारी और आय में सुधार होगा।
भंडारण और मूल्यवर्धन का महत्व
भारत में अनुमानित पोस्ट-हार्वेस्ट नुकसान दालों में 8-12% तक होता है। इसका मुख्य कारण खराब भंडारण और अपर्याप्त प्रसंस्करण है। मिशन के तहत मिनी साइलो, साफ-सुथरे गोदाम और प्रसंस्करण इकाइयाँ लगाकर यह नुकसान घटाया जाएगा।
साथ ही किसानों को पैकिंग, ब्रांडिंग और वैल्यू-ऐडेड प्रोडक्ट बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे किसान सीधे उपभोक्ता तक बेहतर उत्पाद बेच पाएंगे और उनकी कमाई बढ़ेगी।
सरकार की रणनीति और क्रियान्वयन ढांचा
मिशन को मिशन-मोड में लागू किया जाएगा। इसमें तीन स्तर होंगे:
- राष्ट्रीय स्तर: नीति निर्धारण, बजट आवंटन और समन्वय।
- राज्य स्तर: प्रशिक्षण, बीज वितरण और लॉजिस्टिक्स।
- जिला स्तर: किसानों की पहचान, DAAAP तैयार करना और स्थानीय निगरानी।
डिजिटल प्रबंधन और मासिक रिपोर्टिंग से पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी। NITI Aayog और कृषि मंत्रालय समय-समय पर समीक्षा करेंगे।
कृषि विशेषज्ञों की राय
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सही दिशा में है। यदि सरकार समय पर बीज, प्रशिक्षण और खरीद प्रणाली सुनिश्चित कर दे तो भारत 2031 से पहले आत्मनिर्भर बन सकता है। तथापि, विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि जमीनी सतह पर समन्वय और तेज कार्यान्वयन आवश्यक है।
डॉ. के.एस. राजपूत (कृषि वैज्ञानिक): “हमें जमीन पर तेजी से दिखने वाले परिणाम चाहिए — बीज वितरण, साइलो निर्माण और MSP खरीद में स्पष्टता। तभी किसान विश्वास करेंगे।”
चुनौतियाँ और जोखिम
किसी भी बड़े मिशन के साथ चुनौतियाँ आती हैं। PM-DDKY के संदर्भ में प्रमुख जोखिमः
- किसानों को नई फसल तकनीक अपनाने में समय लगना।
- मौसम की अनिश्चितता — सूखा या बाढ़ से फसल प्रभावित हो सकती है।
- राज्यों और विभागों के बीच समन्वय की कमी।
- भंडारण और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क का समय पर तैयार न होना।
- बिचौलियों और नकली बीज जैसी समस्याओं की रोकथाम।
स्थानीय उदाहरण और प्रारंभिक पायलट
पहले चरण में कुछ चयनित जिलों में पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश में पायलट के रूप में बीज वितरण और मिनी साइलो का काम शुरू हुआ है। इन जिलों से मिली रिपोर्ट के आधार पर योजना को समेकित किया जाएगा।
राजस्थान में सूखा-रोधी किस्में और जल संरक्षण पर काम बढ़ाया जा रहा है।
बीज उत्पादन और प्रसंस्करण केंद्र खोलकर किसान मंडलों को सशक्त बनाया जा रहा है।
लंबे समय का प्रभाव
अगर यह मिशन सफल रहा तो भारत दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकता है और भविष्य में दालों का निर्यात भी कर सकता है। कृषि में विविधता आने से मिट्टी की सेहत भी सुधरेगी क्योंकि दाल नाइट्रोजन फिक्सिंग फसल होती है। इस तरह टिकाऊ खेती को बल मिलेगा और पीढ़ियों के लिए भूमि उपजाऊ बनी रहेगी।
हाल की प्रगति और सरकारी अपडेट
प्रारंभिक चरण में मंत्रालय ने राज्यों से प्रस्ताव मांगे हैं और कुछ राज्यों में पायलट लागू हो चुके हैं। कृषि मंत्रालय ने पहले साल के लिए शुरुआती फंड जारी किया है और अगले चरण में बड़े पैमाने पर बीज वितरण और साइलो निर्माण की योजना है।
Quick Facts (सारांश तालिका)
विषय | विवरण |
---|---|
योजना नाम | Mission for Aatmanirbharta in Pulses (Dalhan Aatmanirbharta Mission) |
अवधि | 2025–2031 (6 साल) |
कुल बजट | ₹11,440 करोड़ |
प्राथमिक दालें | अरहर, उड़द, मसूर |
मुख्य गतिविधियाँ | बीज सुधार, फसल क्षेत्र विस्तार, भंडारण व प्रसंस्करण, MSP खरीद |
FAQ — अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q: Mission for Aatmanirbharta in Pulses क्या है?
A: यह केंद्र सरकार की योजना है जिसका लक्ष्य दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करना है।
Q: योजना की अवधि कितनी है?
A: यह मिशन छह साल (2025–2031) तक चलेगा।
Q: कौन-कौन सी दालें शामिल हैं?
A: अरहर, उड़द और मसूर — इन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
Q: बजट कितना है?
A: कुल बजट ₹11,440 करोड़ है।
निष्कर्ष
Mission for Aatmanirbharta in Pulses एक दूरदर्शी योजना है। इसका लक्ष्य सिर्फ उत्पादन बढ़ाना नहीं, बल्कि किसान को सशक्त बनाना है। यह योजना कृषि आत्मनिर्भरता बढ़ाएगी, दालों के आयात को घटाएगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ताकत देगी। अगर केंद्र और राज्य मिलकर पारदर्शिता से इसे लागू करते हैं तो भारत अगले कुछ वर्षों में दाल उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर बन सकता है।
Mission for Aatmanirbharta in Pulses — 2025 से 2031 तक लागू मिशन। उद्देश्य है दालों की आत्मनिर्भरता। बजट ₹11,440 करोड़। प्राथमिक फोकस अरहर, उड़द और मसूर। प्रमुख तत्व: बीज सुधार, फैसल क्षेत्र विस्तार, भंडारण और MSP खरीद।
यह लेख सार्वजनिक स्रोतों और सरकारी प्रेस नोट्स पर आधारित है। आधिकारिक और ताज़ा जानकारी हेतु PMO/PIB और कृषि मंत्रालय की वेबसाइट देखें।